Aurangabad Train Acccident : यहां पढ़िए उस भयावह हादसे का आंखों देखा हाल… – News18 इंडिया

औरंगाबाद ट्रेन हादसे में जीवित बचे श्रमिक की कहानी (फाइल फोटो)

सज्जन ने बताया कि महाराष्ट्र सरकार (maharashtra government) या फिर फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से उन्हें स्टेशन तक ले जाने के लिए किसी भी तरह के परिवहन (transport) की व्यवस्था नहीं की गई थी. मजबूरी में सभी को पैदल ही ट्रेन (train) पकड़ने निकलना पड़ा था.

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जबलपुर. औरंगाबाद रेल हादसे (aurangabad train accident) में मध्य प्रदेश  के 16 मजदूर अपनी जान गंवा बैठे. लेकिन खुशकिस्मत रहे सज्जन सिंह. मौत उनकी आंख के सामने से उन्हें छूती हुई निकल गई. वे बाल-बाल बचे, लेकिन ये अफसोस ताउम्र रहेगा कि वे अपने उन साथियों को नहीं बचा पाए, जिनके साथ उसका रोज का उठना-बैठना और खाना-पीना था. आप भी सुनिए उस मनहूस सुबह औरंगाबाद के नजदीक रेल पटरी पर क्या हुआ था.

औरंगाबाद रेल हादसे के चश्मदीद और हादसे में बाल-बाल बचे मध्य प्रदेश के मंडला निवासी सज्जन सिंह ने न्यूज 18 से खास बातचीत करते हुए मौत के उस दर्दनाक मंजर को बयां किया. सज्जन ने बताया कि लॉकडाउन (Lockdown) में वे किस तरह बेबस हो गए थे. काम बंद था. रोजगार की कोई गुंजाइश नहीं थी. जमा पूंजी खर्च हो चुकी थी. खाने के लिए पैसे नहीं थे. ऐसे हालात में घर लौटने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा था. लेकिन घर लौटते तो कैसे. बस-ट्रेन सब बंद थे. पैदल चलने के अलावा कोई उपाय नहीं था. हालात से मजबूर होकर वे और उनके साथी मजदूरों पैदल ही घर से निकल पड़े. जालना की एक फैक्ट्री में काम करने वाले ये सभी मजदूर पैदल चले जा रहे थे. करीब 45 किलोमीटर चलकर जब ये लोग थककर चूर हो गए, तो उन्होंने रेल पटरियों को ही अपनी आरामगाह बना लिया.

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नींद में ही हमेशा के लिए सो गए साथीसज्जन सिंह और सभी साथी गहरी नींद में थे. इससे पहले की कोई कुछ समझ पाता मालगाड़ी के पहिए एक के बाद एक कर 16 मजदूरों को काटते हुए आगे बढ़ गए. सज्जन ने मौत के इस भयावह मंजर को अपनी आंखों से देखा. उनका कहना है कि सभी इतनी गहरी नींद में थे कि रेल की आवाज तक किसी को सुनाई नहीं दी. ये तो गनीमत रही कि सज्जन पटरी के बीच में न सोकर पटरियों से सटकर सोए हुए थे. इसलिए मालगाड़ी का उन्हें झटका तो लगा, लेकिन जान बच गई. ट्रैक पर दूर तक सिर्फ मजदूरों के कटे-फटे अंग, खून और मांस के लोथड़े छितरा गए.

नहीं थी सरकारी व्यवस्था
सज्जन ने सरकारी दावों की भी पोल खोली. उन्होंने बताया कि महाराष्ट्र सरकार या फिर फैक्ट्री प्रबंधन की ओर से उन्हें स्टेशन तक ले जाने के लिए किसी भी तरह के परिवहन की व्यवस्था नहीं की गई थी. मजबूरी में सभी को पैदल ही ट्रेन पकड़ने निकलना पड़ा था.

स्पेशल ट्रेन से लौटे 1332 मजदूर
जिस ट्रेन से श्रमिकों के शवों को जबलपुर लाया गया उसमे औरंगाबाद से ही 16 जिलों के अन्य श्रमिक भी घर लौट आए. ट्रेन से उतरने पर अपने गृह जनपद जाने के लिए सभी कतार में लगे रहे. इनमें से कुछ ऐसे थे जिनके चेहरे पर सुकून से ज्यादा वह थकान थी, जिसे ये बीते दो हफ्तों से सह रहे थे. औरंगाबाद से लौटे विजय भी उन्हीं में से एक हैं. विजय ने बताया कि वो पुणे से पैदल चलकर औरंगाबाद पहुंचे थे. केशोबाई के हाल भी कुछ ऐसे ही रहे. ये सभी अपने घर लौटने के लिए मीलों तक पैदल चले.

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First published: May 9, 2020, 7:18 PM IST

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