कैलास मानसरोवर लिंक रोड पर नेपाल को दो टूक जवाब- भारतीय क्षेत्र में बनी है सड़क – Navbharat Times

भारत ने साफ कहा है कि सड़क उसके क्षेत्र में बनी है
हाइलाइट्स

  • भारत ने खारिज की कैलास मानसरोवर लिंक रोड पर नेपाल सरकार की आपत्ति
  • विदेश मंत्रालय ने साफ जवाब देते हुए कहा कि यह सड़क पूरी तरह से भारत में है
  • नेपाल ने सड़क ने उद्घाटन पर आपत्ति जताते हुए कहा था कि यह हिस्सा नेपाल में है
  • भारत सरकार ने बताया है कि सड़क पहले से बने रास्ते पर ही है, जोकि भारत में है

नई दिल्ली

उत्तराखंड में धारचूला और लिपुलेख दर्रे (Lipulekh pass) को जोड़ने के लिए भारत ने एक सड़क बनाई है। पड़ोसी राज्य नेपाल ने कैलास मानसरोवर लिंक रोड (Kailash Mansarovar link road) पर ऐतराज जताते हुए कहा कि यह एकतरफा कार्रवाई है। साथ ही नेपाल ने इस क्षेत्र को अपना हिस्सा बताते हुए कहा कि भारत यहां कोई गतिविधि ना करे। अब भारत के विदेश मंत्रालय ने दो टूक जवाब देते हुए कहा है कि यह पिथौरागढ़ का यह हिस्सा पूरी तरह से भारत का हिस्सा है।

भारत ने शनिवार को नेपाल की आपत्ति को खारिज करते हुए कहा कि उत्तराखंड में धारचूला को लिपुलेख दर्रे से जोड़ते हुए जो नई सड़क (कैलास मानसरोवर लिंक) बनाई गई है, वह पूरी तरह उसके क्षेत्र में है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में चीन की सीमा से सटे क्षेत्र में 17,000 फुट की ऊंचाई पर 80 किलोमीटर लंबे रणनीतिक मार्ग का उद्घाटन किया। नेपाल ने शनिवार को यह कहते हुए ऐतराज जताया कि यह ‘एकतरफा कार्रवाई’ दोनों देशों के बीच सीमा मुद्दों के समाधान के लिए बनी आपसी समझ के खिलाफ है।

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भारत ने दिया साफ जवाब- सड़क भारत में बनी है

भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा, ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में हाल में उद्घाटन किया गया मार्गखंड पूरी तरह भारत के क्षेत्र में है। यह सड़क कैलास मानसरोवर यात्रा के तीर्थयात्रियों के उपयोग में आने वाले वर्तमान मार्ग पर ही है। वर्तमान परियोजना के अंतर्गत उसी रास्ते को तीर्थयात्रियों, स्थानीय लोगों और व्यापारियों की सुविधा के लिए आवागमन लायक बनाया गया है। भारत और नेपाल ने सभी सीमा मामलों से निपटने के लिए व्यवस्था स्थापित कर रखी है।’

मानसरोवर रूट से जुड़ा लिपुलेख दर्रा, चिनूक हेलिकॉप्टर की मदद से बनी सड़क
मानसरोवर रूट से जुड़ा लिपुलेख दर्रा, चिनूक हेलिकॉप्टर की मदद से बनी सड़कसड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने एक ट्वीट में इस परियोजना से जुड़ी तस्वीरों को साझा किया है। गडकरी ने कहा, ‘बीआरओ को कैलास मानसरोवर मार्ग को लिपुलेख दर्रे से जोड़ने के लिए बधाई। यह दर्रा 17,060 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।’गडकरी ने कहा कि पहली बार सीमावर्ती गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है और कैलास मानसरोवर के यात्रियों को 90 किमी का पैदल रास्ता तय नहीं करना पड़ेगा। वे गाड़ियों से चीन सीमा तक जा सकते हैं। साथ में उन्होंने इस प्रोजेक्ट की कुछ तस्वीरें भी साझा की। इसमें एक तस्वीर में चिनूक हेलीकॉप्टर को गूंजी तक मशीनरी ले जाते हुए दिखाया गया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इन लिंक रोड का उद्घाटन किया।

बताते चलें कि लिपुलेख दर्रा कालापानी के समीप एक सुदूर पश्चिम स्थान है। कालापानी भारत और नेपाल के बीच विवादित सीमा क्षेत्र है। भारत और नेपाल दोनों ही उसे अपना हिस्सा बताते हैं। नेपाल ने इस सड़क के निर्माण के बाद भारत से उसकी सीमा के अंदर कोई भी गतिविधि नहीं करने के लिए कहा है। उसका कहना है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को कूटनीतिक तरीके से निपटाया जाएगा।

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नेपाल का दावा- सड़क उसके क्षेत्र से गुजरती है

नेपाल के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, ‘नेपाल सरकार को पता चला है कि भारत ने कल (शुक्रवार को) लिपु लेख को जोड़ने वाली लिंक रोड का उद्घाटन किया है, जो नेपाल से होकर गुजरती है।’ नेपाल ने कहा कि उसने हमेशा यह साफ किया है कि सुगौली समझौते (1816) के तहत काली नदी के पूर्व का इलाका, लिंपियादुरा, कालापानी और लिपुलेख नेपाल का है। उसका कहना है, ‘नेपाल सरकार ने कई बार पहले और हाल में भी कूटनीतिक तरीके से भारत सरकार को उसके नया राजनीतिक नक्शा जारी करने पर बताया था।

कैलास मानसरोवर यात्रा होगी आसान

  • कैलास मानसरोवर यात्रा होगी आसान

    गडकरी ने कहा कि पहली बार सीमावर्ती गांवों को सड़क मार्ग से जोड़ा जा रहा है और कैलास मानसरोवर के यात्रियों को 90 किमी का पैदल रास्ता तय नहीं करना पड़ेगा। वे गाड़ियों से चीन सीमा तक जा सकते हैं। साथ में उन्होंने इस प्रोजेक्ट की कुछ तस्वीरें भी साझा की। इसमें एक तस्वीर में चिनूक हेलीकॉप्टर को गूंजी तक मशीनरी ले जाते हुए दिखाया गया है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए इन लिंक रोड का उद्घाटन किया।
  • 11 टन तक वजन उठा सकता है चिनूक

    2015 में भारत के 15 चिनूक हेलिकॉप्टर्स खरीदने के लिए अमेरिका के साथ करार किया था। चार हेलिकॉप्टरों की पहली खेप पिछले साल फरवरी में भारत को मिली थी। यह हेलिकॉप्टर किसी भी मौसम में सेना की टुकड़ियों और साजोसामान को दुर्गम और ऊंचे इलाकों में पहुंचा सकता है। इसकी खूबी यह है कि इसे छोटे हेलीपैड और संकरी घाटियों में भी उतारा जा सकता है। यह तेजी से उड़ान भरने में सक्षम है और बेहद घनी पहाड़ियों में भी बखूबी अपना काम करता है। चिनूक में दो रोटर इंजन लगे हैं जो इसे बेहद शक्तिशाली बनाता है। यह 11 टन तक भार उठाने में सक्षम है।
  • दुर्गम इलाकों में साजोसामान पहुंचाने में चिनूक का सानी नहीं

    सैन्य के साथ-साथ इसका असैन्य गतिविधियों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। पहाड़ी राज्यों में दुर्गम और ऊंचाई वाले इलाकों में इसके जरिए आसानी से साजोसामान पहुंचाया जा सकता है। खासकर दुर्गम इलाकों में सड़क निर्माण की परियोजनाओं में यह काफी मददगार साबित हो सकता है।
  • सैन्य अभियान के साथ इन्फ्रा प्रोजेक्ट्स में भी इस्तेमाल

    चिनूक के भारतीय एयरफोर्स के बेड़े में शामिल होने से न केवल सेना की क्षमता बढ़ी है बल्कि कठिन रास्ते और बॉर्डर पर इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट को बनाने में भी इसका अहम योगदान रह सकता है। नॉर्थ ईस्ट में कई रोड प्रोजेक्ट सालों से अटके पड़े हैं और उन्हें पूरा करने के लिए बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन लंबे समय से एक हैवी लिफ्ट चॉपर का इंतजार कर रहा था। इससे इन घनी घाटियों में सामग्री और जरूरी मशीनों को पहुंचाया जा सकता है। अमेरिकी सेना पहाड़ी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए इन्हें इस्तेमाल करती है। साथ ही आपदा राहत अभियानों में भी यह अपना काम अच्छी तरह करता है।

कूटनीतिक समाधान के पक्ष में है नेपाल

नेपाल ने इस कदम को एकपक्षीय बताया है और कहा कि यह इस समझ के खिलाफ है कि दोनों देश बातचीत और सहमति से सीमा विवाद को निपटाएंगे। नेपाल का दावा है कि वह ऐतिहासिक समझौतों, दस्तावेजों, तथ्यों और नक्शों की बदौलत इसे सुलझाना चाहता है। बता दें कि भारत के बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने कैलाश मानसरोवर रूट से लिपुलेख पास को जोड़ा है, जिससे सीमावर्ती गांवों और सुरक्षाबलों को कनेक्टिविटी मिल सके।

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