जानें बिना लक्षण वाले कोरोना मरीज कैसे बने हैं हर देश के लिए सिरदर्द और क्‍या होती है रैपिड टेस्‍ट किट – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)

Publish Date:Wed, 22 Apr 2020 10:42 AM (IST)

नई दिल्‍ली। राजस्‍थान में रैपिड टेस्‍ट किट के जरिए कोरोना टेस्‍ट के रिजल्‍ट सही न आने से परेशानी बढ़ गई है। कुछ दिन पहले ही ये किट राजस्‍थान भेजी गई थीं, लेकिन राज्‍य सरकार की तरफ से इन्‍हें ये कहते हुए लौटा दिया गया कि इससे रिजल्‍ट सही नहीं आ रहे हैं। इसके बाद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इस किट से जांच करने पर फिलहाल रोक लगा दी है। अब आईसीएमआर के वैज्ञानिक दो दिन फील्ड में जाकर किट का परीक्षण करेंगे। इसके बाद सरकार आगे इनके इस्तेमाल को लेकर अंतिम निर्णय लेगी। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए इन रैपिड किट की अहमियत काफी ज्‍यादा है।

हम आपको बताते हैं कि आखिर ये टेस्‍ट किट कैसे काम करती है। दरअसल, जब आप किसी वायरस या और किसी पैथोजन से संक्रमित होते हैं, तो शरीर उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनाता है। रैपिड टेस्ट से इन्हीं एंटीबॉडी का पता लगता है। खून में मौजूद एंटीबॉडी से ही पता चलता है कि कोरोना या किसी अन्य वायरस का संक्रमण है या नहीं।

आपको बता दें कि शरीर को स्‍वस्‍थ रखने में एंटीबॉडीज की भूमिका काफी अहम होती है। ये किसी भी बीमारी का प्रभाव कम करने और उसको खत्‍म करने का काम करती है। इनके बनने की शुरुआत एंटीजन के शरीर में प्रवेश के बाद होती है। एंटीबॉडीज शरीर में मौजूद व्‍हाइट ब्‍लड सेल्‍स या बी लिंफोसाइट्स के जरिए बनती हैं। एंटीजन बी सेल्‍स इनके निर्माण में आफी अहम भूमिका निभाते हैं। 

भारत समेत कुछ दूसरे देश रैपिड टेस्‍ट किट के खराब होने की समस्‍या के अलावा एक दूसरी समस्‍या से भी जूझ रहे हैं। ये दूसरी समस्‍या बने हैं एसिम्प्टोमैटिक मरीज। ये वो मरीज होते हैं जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण दिखाई नहीं देते और वो अनजाने में इससे दूसरों को प्रभावित कर देते हैं। इन्‍हें तलाश करना, इनका इलाज करना हर किसी के लिए बड़ी चुनौती है। ये एक बड़ा खतरा भी हैं।

हालांकि कोरोना के कितने मरीजों में लक्षण नहीं दिखते इसका आंकड़ा हर जगह अलग-अलग ही दिखता है। आईसीएमआर की मानें तो भारत के करीब 69% मरीज ऐसे हैं जिनमें शुरुआती लक्षण नहीं दिखे। इसके अलावा सेंटर फॉर डिजिज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन और डब्ल्यूएचओ का शोध कहता है कि विश्व में करीब पचास से 70 प्रतिशत मरीजों में संक्रमण का पता नहीं चला। पर ये प्रमाणित नहीं हो सका है कि इनसे एक साथ कितने लोग संक्रमित हो सकते हैं।

इन मरीजों के बारे में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी और संक्रामक रोगों के निदेशक एंथोनी फाऊची का मानना है कि इस खतरे को ज्यादा से ज्‍यादा टेस्ट करके इस खतरे को कम किया जा सकता है। वहीं वॉल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में सात सौ संक्रमित बच्चों पर शोध में पाया गया कि 56 प्रतिशत में कोई लक्षण नहीं थे। यूनिवर्सिटी ऑफ पीट्सबर्ग मेडिकल सेंटर के पेड्रियाटिक एक्सपर्ट ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि दस से तीस प्रतिशत बच्चों में यह सामान्य है। इसलिए बच्चों पर भी खास ध्यान देने की बात तमाम रिसर्च में की गई है।

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Posted By: Kamal Verma

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