ढाई वर्ग किमी में रहती हैं 15 लाख की आबादी; दस बाई दस के कमरे में 10-10 लोग, 73% पब्लिक टायलेट इस्तेमाल करते हैं

धारावी चारों ओर से सील है। कोई भी बाहरी व्यक्ति यहां अंदर नहीं जा सकता। हर ओर पुलिस के बैरिकेट्स हैं और सख्त पहरा भी। यह शहर के अंदर एक शहर है। फिल्मों और लेखकों का पसंदीदा मुद्दा और लोकेशन रहा है। इतना पसंदीदा की मुंबई में धारावी के लिए स्लम टूरिज्म होता है।

दुनिया के इस सबसे बड़े स्लम (2.6 स्क्वायर किलोमीटर इलाका) में 15 लाख लोग रहते हैं। यहां दस बाईदस फीट का कमरा 8-10 लोगों का घर होता है। यहां 73 फीसदी लोग पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करते हैं। किसी टायलेट में 40 सीट होती हैं, कहीं 12 और कहीं 20 सीट वाले टॉयलेट होते हैं। एक सीट को रोज अंदाजन 60 से 70 लोग इस्तेमाल करते हैं, यानी एक दिन में एक हजार से ज्यादा लोग पब्लिक टॉयलेट में आते हैं।

जाहिर है इन सबके बीच सोशल डिस्टेंसिंग कैसे संभव हो सकती है। जिस सोशल डिस्टेंसिंग के लिए पूरा देश घर के अंदर रहता है, उसी सोशल डिस्टेंसिंग के लिए धारावी घर से बाहर रहता है। यहां सुबह होते ही लोग इन घुटन भरे कमरों से बाहर गलियों में निकल आते हैं।

यहां सायन अस्पताल के एक 20 बेड के वॉर्ड को क्वारैंटाइन सेंटर बनाया गया है। यहां भर्ती होने के तीन या चार दिन बाद सैंपल लिया जाता है और तीन दिन बाद रिपोर्ट आती है। जहां से कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलता है, उसके घर में जगह है तो परिवार और आसपास के लोगों को घर में क्वारैंटाइन होने के लिए कहा जाता है। उनसे बोल दिया जाता है कि लक्षण आने पर वे फौरन अस्पताल आएं, बीएमसी के डॉक्टर भी कॉल करके फॉलोअप लेते हैं। लेकिन अब मरीज इतने हो गए हैं कि डॉक्टर कॉल नहीं कर पा रहे हैं। पॉजिटिव मिलने पर उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है। जाना तो कोई नहीं चाहता लेकिन उन्हें जबरदस्ती ले जाया जाता है।

बॉलीवुड-हॉलीवुड की कई फिल्मों में धारावी को दिखाया गया है। दुनिया के इस सबसे बड़े स्लम में ढाई स्क्वायर किमी में 15 लाख लोग रहते हैं।

15 अप्रैल को धारावी में 56 वर्षीय मोहम्मद तालिब शेख का कोविड-19 से इंतकाल हो गया। उनके दोनों बेटे उनके पास नहीं थे। एक सउदी में तो दूसरा उत्तर प्रदेश में है। उनके करीबी रिश्तेदार मतिउर्ररहमान बताते हैं, “हम कोरोना से इतना परेशान नहीं थे, उसका इलाज करवा लेते लेकिन शेख साहब को वक्त पर डायलिसिस नहीं मिला। क्योंकि कोरोना मरीजों का डायलिसिस अलग मशीन से किया जा रहा है और पूरे मुंबई में वह मशीन खाली नहीं थी। मेरे सामने हर दिन उनका पेट फूलता चला गया और वह बुरी तरह तड़प कर मरे हैं। ‘ मतिउर्ररहमान, तालिब शेख की वजह से धारावी के पास सायन अस्पताल में पांच दिन तक रहे।
धारावी के मरीजों और संदिग्धों के लिए यहीं क्वारैंटाइन सेंटर बनाया गया है। मतिउर्रहमान बताते हैं कि यहां 20 बेड का एक कमरा है, जहां कोरोना पॉजिटिव, निगेटिव और संदिग्ध मरीजों को रखा गया है। तालिब शेख को लक्षण आने के बाद 7 अप्रैल को सायन अस्पताल के क्वारंटीन सेंटर ले जाया गया था, जहां तीन दिन बाद उनका टेस्ट हुआ।

वह पहले से किडनी और लो बीपी के मरीज थे। उनकी हालत ऐसी नहीं थी कि वह वहां ज्यादा दिन रह सकते लेकिन किसी ने मेरी नहीं सुनी। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना था कि उनके पास टेस्टिंग किट आएगी तो ही वह टेस्ट कर सकेंगे।

मतिउर्ररहमान ने दबाव से तालिब शेख को उस क्वारैंटाइन सेंटर से निकाला और चैंबूर के एक निजी अस्पताल में भर्ती करवा दिया, जहां उनकी कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आई लेकिन यह सुनते ही तालिब शेख को हार्ट अटैक आ गया।

धारावी में सामुदायिक तौर पर कोरोना फैलने की शुरुआत हो चुकी है। इसमें कोई शक नहीं कि यहां लोग लॉकडाउन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं और कोरोना के भयानक नतीजों से भी बेखबर हैं। शाम के वक्त जब खाना बंटता है तो यहां मेला लग जाता है। सामान्य दिनों से ज्यादा बुरी हालत होती है।

एक अनुमान के मुताबिक, धारावी में 1 बिलियन डॉलर का कारोबार इनफॉर्मल इंडस्ट्री से होता है। फिलहाल यहां सबकुछ बंद है।

टेड स्पीकर और टाटा इंस्टीटयूट ऑफ सोशल साइंस (टिस) के छात्र फाहद अहमद बताते हैं, “हम मुंबई के बड़े स्लम धारावी-कमाठीपुरा में राशन और खाना बंटवाते हैं लेकिन धारावी में स्थितियां हाथ से निकल चुकी हैं। सरकारी मदद के बिना धारावी को बचाया नहीं जा सकता है।”

“पहले यह होता था कि धारावी में लोग सुबह काम पर निकल जाते थे और रात में बुरी तरह थककर सो जाते थे। पांव पसारने की जगह भी मिल जाती थी तो नींद आ जाती थी अब सुबह से रात तक एक खोली में 10-10 लोगों के रहने से मानसिक बीमारियां भी हो रही हैं और ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग तो हो ही नहीं सकती है।”

फहाद कहते हैं, “धारावी में लॉकडाउन असंभव है। अगर लॉकडाउन लगवाना है तो यहां के हर घर से आधे से ज्यादा लोगों को किसी स्कूल या किसी मैदान में शिफ्ट करना होगा। तब जाकर पॉपुलेशन डेनसिटी कम होगी।”

फाहद बताते हैं, “बीमारी फैल रही है इसमें यहां लोगों की भी गलती है। कुछ लोग तो पुलिस को भी चिढ़ाते लगते हैं कि देखो हम घर से बाहर हैं। मेरे सामने कोरोना से चार मौतें हो चुकी हैं लेकिन अब कुछ दिनों में भूख से मौतें शुरू हो जाएंगी। खाने की कतारें हर दिन लंबी होती जा रही हैं। हर दिन 40 से 50 लोगों को बिना खाने के लौटाना पड़ता है।”

धारावी में राशन बंटने के दौरान इसी तरह भीड़ इकट्ठा हो जाती है।

लंबे समय से विदेशी मीडिया के लिए धारावी कवर कर रहे पार्थ एमएन कहते हैं, “अगर धारावी पैरालाइज हो गया तो मुंबई की आर्थिक व्यवस्था में यह एक बड़ा धक्का होगा। कामगारों की एक बड़ी संख्या यहां से ही आती है। यहां दस हजार से ज्यादा मैन्युफैक्चिरिंग यूनिट्स हैं जो कि बंद पड़े है। यहां घर-घर में जींस, रेडीमेड कपड़े, लेबलिंग, प्लास्टिक और लैदर का होलसेल काम होता है और फैक्ट्रियां चलती हैं। 1 बिलियन डॉलर का कारोबार यह इनफॉर्मल इंडस्ट्री से होता है।”

लगभग दस लाख आबादी वाले धारावी को 7 वॉर्ड में बांटा गया है। यहां के सबसे अधिक प्रभावित वॉर्ड के नगर सेवक बाबू खान बताते हैं कि अगर धारावी के लिए पहले से प्रशासन सतर्क होता तो शायद हालात संभले हुए होते। लोग डरे हुए हैं, बदहवास हैं, इनके हलक सूखे हुए हैं, ये भूखे हैं, बिना पैसे के हैं, दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।

बाबू खान को बीएमसी की तरफ से 500 पैकेट खाने के दिए जाते हैं। जिसमें चावल होते हैं। वह कहते हैं कि एक मजदूर का उस चावल से क्या होगा? दूसरा यह भी कि इलाके में डेढ़ लाख लोग रहते हैं। डेढ़ लाख में से बीएमसी सिर्फ 500 लोगों को मुट्ठी भर चावल दे रही है।

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धारावी में बड़ी संख्या में कामगार और मजदूर रहते हैं। यहां दस हजार से ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स हैं। यहां घर-घर में जींस, रेडीमेड कपड़े, लेबलिंग, प्लास्टिक और लैदर का होलसेल काम होता है।

Source: DainikBhaskar.com

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