देश में कोरोना संकट बढ़ाने वाली तब्लीगी जमात पहले भी कई बार रही है विवादों में, जानें इसकी स्‍थापना से लेकर पूरा इतिहास – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)

Publish Date:Thu, 02 Apr 2020 06:52 AM (IST)

नई दिल्‍ली, जेएनएन। भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच जिस नाम की सबसे ज्यादा चर्चा है, वो है तब्लीगी जमात। निजामुद्दीन के तब्लीगी मरकज में आयोजित धार्मिक जलसे में बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए। जिसके बाद कई लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है। इसके बाद से ही तब्लीगी जमात प्रशासन के निशाने पर है और इसमें शामिल होने वाले लोगों की तलाश जारी है। तब्लीगी जमात ऐसे लोगों का समूह है, जो मुस्लिम धर्म का प्रचार-प्रसार के लिए स्वयं को समर्पित करते हैं। यह पहली बार नहीं है जब यह चर्चा में है। इससे पहले भी कई बार तब्लीगी जमात विवादों में रही है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि इसका मकसद क्या है? किसने इसकी स्थापना की और किन विवादों के चलते यह पहले भी विरोध झेल चुकी है।

तब्लीगी जमात की स्थापना

तब्लीगी जमात की स्थापना 1927 में हुई। उस दौर में यह सुधारवादी धार्मिक आंदोलन के रूप में अस्तित्व में आई और इसकी स्थापना करने वाले मुहम्मद इलियास कांधलवी थे। यह सुन्नी मुसलमानों का संगठन है। 1941 में जमात के पहले जलसे में करीब 25 हजार लोग शामिल हुए थे। उस वक्त भारत का बंटवारा नहीं हुआ था। पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बड़ी संख्या में लोग जमात से जुड़े हैं। तब्लीगी जमात दुनिया के 20 करोड़ मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है।

मुजफ्फरनगर से जुड़ा इतिहास

उत्तर प्रदेश के मुजफफरनगर जिले के कांधला गांव में मुहम्मद इलियास कांधलवी का जन्म हुआ था। कांधला गांव का होने के कारण नाम में कांधलवी लगाया जाता है। शुरुआत में स्थानीय मदरसे में पढ़ाई की और उसके बाद दिल्ली के निजामुद्दीन आ गए। जहां पर उन्होंने रुरान को कंठस्थ किया और अरबी-फारसी की किताबों को पढ़ा। इस्लाम का अध्ययन कर नामचीन इस्लामिक हस्ती रशीद अहमद गंगोही के साथ ही रहने लगे। कांधलवी देवबंदी विचारधारा से प्रभावित थे। 1908 में उन्होंने दारुल उलूम में दाखिला लिया। काफी सालों बाद उन्होंने दिल्ली की बंगलावाली मस्जिद में जमात की स्थापना की।

मेवात को बनाया कार्यक्षेत्र

इलियास कांधलवी ने हरियाणा के मेवात को सबसे पहले अपना कार्यक्षेत्र बनाया। सहारनपुर के मदरसा मजाहिरुल उलूम में पढ़ाना छोड़कर वे मेवात के मुसलमानों के बीच जा पहुंचे और वहां पर इस्लाम के प्रचार प्रसार में जुट गए। मेवात को कार्यक्षेत्र बनाने के पीछे उनका मकसद यहां के मुसलमानों का मिशनरी के प्रभाव में आकर के मुस्लिम धर्म को छोड़ने से रोकना था। 20 वीं शताब्दी की शुरुआत में कई मुसलमानों ने मुस्लिम धर्म छोड़ दिया था, जिसके कारण कांधलवी ने यहां पर कार्य करना शुरू किया।

निजामुद्दीन में है मरकज

निजामुद्दीन में स्थित तब्लीगी मरकज जमात का मुख्यालय है। मरकज का शाब्दिक अर्थ केंद्र होता है। देश के जमातियों के एकत्रित होने के स्थान को मरकज कहा जाता है। यहां पर देश-विदेश से जमातें आती हैं। मरकज के अध्यक्ष मौलाना साद हैं। यहां पर हर गुरुवार को दीनी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है, जिसमें दिल्ली के साथ ही अन्य जगहों से भी लोग आते हैं। यहां तक कि बहुत से लोग विदेश से भी आते हैं।

ऐसे काम करती है जमात

जमात समूह को कहते हैं। इस संगठन से जुड़ी जमात में पांच या पांच से ज्यादा लोग होते हैं और धर्म प्रचार के लिए किसी खास क्षेत्र को चुना जाता है। इसके बाद ये लोग अलग-अलग अवधि के लिए धर्म प्रचार करने के लिए दूसरी जगहों पर जाते हैं। यह अवधि तीन दिन, 40 दिन, चार महीने की होती है। इस तरह की यात्रा को गश्त कहा जाता है। वहीं जमात के मुखिया को अमीर ए जमात कहा जाता है। ये लोग मस्जिदों में ही रुकते हैं। दुनिया के दूसरे देशों में भी जमात जाती है। धर्म प्रचार के कार्य में जुटे ये लोग खुद को पूरी तरह से तब्लीगी जमात को सौंप देते हैं। जमात की अवधि पूरी होने पर वह तब्लीगी मरकज जाते हैं। तब्लीगी जमात का शाब्दिक अर्थ निकाला जाए तो यह धर्म के प्रति आस्था और विश्र्वास को लोगों में फैलाने वाला समूह होता है।

छह हैं सिद्धांत

तब्लीगी जमात के छह सिद्धांत होते हैं। इनकी शिक्षाओं में ऐसी ही बातें होती हैं। इनमें अल्लाह पर भरोसा करना, नमाज पढ़ना, धर्म से संबंधी बातों को बढ़ावा देना, मुसलमानों द्वारा एक दूसरे की मदद करना, हमेशा अपनी नीयत को साफ रखना और रोजमर्रा के कामों से दूर रहना जैसे सिद्धांत पेश किए गए हैं। जमात का मकसद मुसलमानों तक पहुंचकर उनकी आस्था को इस्लाम और उसकी परंपराओं को खासतौर पर आयोजन, पोशाक और व्यवहार के स्तर पर बनाए रखना है।

कहां-कहां केंद्र

तब्लीगी जमात को जानने वालों के अनुसार इसके 140 देशों में सेंटर हैं। आजादी के बाद यह दुनिया के दूसरे हिस्सों तक फैला। भारत के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश में इससे जुड़े लोगों की बहुत बड़ी संख्या है। वहीं अमेरिका और ब्रिटेन तक में लोग इससे जुड़े हैं। वहीं मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया जैसे देशों में भी लोग जमात के अनुयायी हैं। हालांकि सऊदी अरब में जमात पर प्रतिबंध है।

ऐसे होता है संचालन

तब्लीगी जमात के संचालन का कोई परिभाषित ढांचा नहीं है। हालांकि मूल रूप से इसका नेतृत्व अमीर द्वारा किया जाता है, जो कि शूरा (परिषद) की अध्यक्षता करते हैं। यह संगठन का केंद्र है और महत्वपूर्ण मामले इन्हीं द्वारा देखे जाते हैं। 1965 से 1995 तक तीसरे अमीर रहे मौलना इनामुल हसन कंधालवी के बाद अमीर की पदवी को समाप्त कर दिया गया। इसके बाद आलमी शूरा (अंतरराष्ट्रीय सलाहकार परिषद) को नियुक्त किया गया।

विवादों में जमात

भारत में जमात के जलसे में शामिल हुए कई लोगों में कोरोना वायरस के संक्रमण की पुष्टि हुई है। वहीं पाकिस्तान के रायविंड में 10-12 मार्च को जमात का जलसा हुआ था। जलसे में शामिल कुछ लोगों के कोरोना की पुष्टि हुई थी। कई लोगों ने पाकिस्तान में भी जमात पर प्रतिबंध की मांग की है। भारत में कई संगठनों ने जमात की आलोचना की है और इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। हालांकि यह हालिया विवाद हैं, जिन्होंने जमात की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगाया है। इससे पहले, आतंकी संगठनों के साथ जुड़ाव के आरोप भी जमात पर लगते रहे हैं।

Posted By: Arun Kumar Singh

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