तब्लीगी जमात के स्वयंभू अमीर से coronavirus का विलेन बनने तक, मौलाना साद का विवादों से नाता – दैनिक जागरण (Dainik Jagran)

Publish Date:Wed, 01 Apr 2020 07:51 PM (IST)

मनीष शर्मा, मुजफ्फरनगर। तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज के साथ एक शख्स और सुर्खियों में है। यह हैं मौलाना साद। पूरा नाम मौलाना मोहम्मद साद वल्द मौलाना हारुन मूल निवासी कांधला जिला शामली (पूर्व में मुजफ्फरनगर)। कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में सबसे बड़े खलनायक के तौर पर उभरे तब्लीगी जमात के स्वयंभू अमीर बनने से लेकर अभी तक मौलाना साद का पुराना नाता रहा है। 

दरअसल, जिस देवबंदी विचारधारा से प्रेरित होकर तब्लीगी जमात की बुनियाद पड़ी मौलाना साद और उनके ख्याल इसके ही मुखालिफ खड़े हो गए। यही कारण रहा कि दारुल उलूम देवबंद ने भी माना कि मौलाना साद की कुरान और हदीस से जुड़ीं तकरीरों में उनकी निजी राय शामिल रहती है। इतना ही नहीं तब्लीगी जमात का अमीर बनने की खातिर मौलाना साद ने सारे नियम-कायदे ध्वस्त कर दिए।

कांधला के मोहम्मद इस्माइल के घर जन्मे मौलाना इलियास कांधलवी ने देवबंदी विचारधारा से प्रेरित होकर 1927 में तब्लीगी जमात की स्थापना इसलिए की थी कि दीन से भटके लोगों को कुरान और हदीस के हवाले से इस्लाम के सच्चे रास्ते पर ला सकें। मौलाना इलियास कांधलवी के इंतकाल के बाद उनके बेटे मौलाना यूसुफ तब्लीगी जमात के अमीर बने। 

मौलाना यूसुफ के बाद जमात की अमीरीयत उनके नूर-ए-चश्म मौलाना हारुन को मिलनी थी, लेकिन उनका बेवक्त इंतकाल हो गया। ऐसे में मौलाना इलियास कांधलवी के भांजे मौलाना इनाम उल हसन को तब्लीगी जमात की बागडोर सौंपी। बाद में उनके बेटे मौलाना जुबैरउल हसन अमीर बने। यहीं से तब्लीगी जमात का सिरमौर बनने का असल द्वंद्व शुरू हुआ। दरअसल, मौलाना इनाम उल हसन ने जमात के संचालन के लिए एक दस सदस्यीय शूरा कमेटी गठित कर दी। 1995 में मौलाना इनाम उल असन का इंतकाल हो गया। सूरा कमेटी काम करती रही, लेकिन मौलाना साद को यह मंजूर नहीं था। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के राय¨वड मरकज के मौलाना मोहम्मद अब्दुल वहाब की बनाई 13 सदस्यीय शूरा को दरकिनार कर संस्थापक मौलाना इलियास के पड़पोते मौलाना साद ने वर्ष 2015 में खुद को तब्लीगी जमात का अमीर घोषित कर दिया।

अमीरीयत को लेकर उठते रहे सवाल, विवादित रहे साद

तब्लीगी जमात का अमीर बनने को लेकर मौलाना साद हमेशा कटघरे में रहे हैं। दारुल उलूम नदवातुल उलमा के जैद मजाहिरी ने इस पर तब्लीगी जमात का बहम इख्तिलाफ और इत्तेहाद ओ इत्तेफाक में तफ्सील से इस बारे में लिखा है। इतना ही नहीं दारुल उलूम देवबंद ने 6 दिसंबर 2016 और दो मार्च 2018 को मौलाना साद के मुखालिफ फतवे जारी किए। ऑनलाइन जारी फतवों में स्पष्ट लिखा गया कि जांच में यह सिद्ध हो चुका है कि कुरान और हदीस का व्याख्यान मौलाना साद अपने नजरिए से करते हैं। इतना ही नहीं पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी पत्र लिखकर मौलाना साद की तकरीरों और अमीरीयत पर सवाल खड़े किए गए।

Posted By: Vijay Kumar

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