लॉकडाउन कामयाब/ भारत में कोरोना की रफ्तार यूरोप, यूएस की तुलना में काफी धीमी, यह 25 दिनों से दूसरी स्टेज में ही है, 8 दिन से औसतन 100 केस ही आ रहे – Dainik Bhaskar

जनता कर्फ्यू के दिन तक भारत में 374 केस थे, उसके बाद 8 दिन में तकरीबन 820 केस आए  अमेरिका में तीसरा फेज शुरू होने पर 10 दिनों में ही एक हजार से 20 हजार केस आ गए थे भारत में कोरोना का तीसरा फेज यानी कम्युनिटी ट्रांसमिशन अभी शुरू नहीं हुआ, यह अच्छा संकेत

दैनिक भास्कर

Mar 30, 2020, 08:49 PM IST

नई दिल्ली. भारत में लॉकडाउन कामयाब होता दिख रहा है। इसके चलते देश में कोरोनावायरस की रफ्तार चीन, अमेरिका ओर यूरोपीय देशों के तुलना में काफी धीमी है। 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के दिन तक देश में 374 केस थे। उसके बाद 8 दिनों में करीब 820 केस सामने आए हैं। यानी एक दिन में औसतन 100 केस ही आए। इसीलिए एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि भारत में कोरोनावायरस 25 दिन बाद भी दूसरी से तीसरी स्टेज में नहीं पहुंच पाया है। जबकि अमेरिका में 10 दिन में ही कोरोनावायरस के केस एक हजार से 20 हजार तक पहुंच गए थे।

आंकड़े क्या कहते हैं : भारत में पहले 50 केस 39 दिन में आए थे, फिर अगले 6 दिन में 150 आए

  • भारत में पहले 50 केस 39 दिन में आए थे। उसके बाद 100 तक पहुंचने में 4 दिन ही लगे। 150 तक पहुंचने में भी 4 दिन लगे, लेकिन उसके बाद 200 के आंकड़े तक पहुंचने में सिर्फ 2 दिन लगे। तीसरा स्टेज कम्युनिटी ट्रांसमिशन का होता है, यह स्टेज भारत में अभी तक नहीं आया है।
  • अमेरिका में 10 मार्च को एक हजार केस हुए थे। तब यहां कम्युनिटी ट्रांसमिशन शुरू हुआ था। इसके बाद अगले 19 दिनों में यह आंकड़ा 1.42 लाख तक पहुंच गया है। भारत में एक हजार का आंकड़ा 28 मार्च को पहुंचा है। अगर यही रफ्तार रही तो अगले रविवार यानी 5 अप्रैल तक देश में कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या 2 हजार तक पहुंच सकती है। 
  • दुनिया में भी इस संक्रमण को पहले 1 लाख लोगों तक फैलने में 67 दिन लगे थे, लेकिन उसके बाद अगले 1 लाख लोगों तक ये 11 दिन में ही फैल गया था। जबकि, 2 लाख से 3 लाख तक पहुंचने में इसे सिर्फ 4 दिन का समय लगा था। अब तो एक दिन में 60 हजार से ज्यादा नए केस आ रहे हैं। 

एक्सपर्ट्स: यदि एक दिन में एक हजार से ज्यादा केस आते हैं तो तीसरी स्टेज माना जाता है
आईएमए के पूर्व चीफ और पद्मश्री डॉ. केके अग्रवाल कहते हैं कि भारत में कोरोनावायरस की तीसरी स्टेज यानी कम्युनिटी ट्रांसमिशन अभी शुरू नहीं हुआ है। यह तब शुरू होता है, जब एक व्यक्ति से यह वायरस दो या इससे ज्यादा लोगों में पहुंचता है। भारत में अभी एक दिन में औसतन 100 केस आ रहे हैं, यह आंकड़ा यदि एक दिन में एक हजार हो जाता है, तो कम्युनिटी ट्रांसमिशन माना जाएगा। हालांकि, मेरठ में यह देखने में आया है कि वहां एक दो व्यक्तियों से यह वायरस 15-16 लोगों में पहुंच गया। 

हैदराबाद में पुलिस लॉकडाउन को कामयाब बनाने के लिए बैनर पोस्टरों का सहारा ले रही है।

कोरोनावायरस की स्टेज: चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों में कोरोना दूसरे से तीसरे स्टेज में सिर्फ 10 से 12 दिनों में पहुंचा 
कोरोनावायरस दुनियाभर में 4 स्टेज में फैला। चीन, अमेरिका, इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी आदि देशों में कोरोना दूसरी से तीसरी स्टेज में महज 10 से 12 दिनों में पहुंच गया।

  • पहली स्टेज में ये वायरस विदेश से आए व्यक्ति से किसी देश में फैला। ऐसा भारत में हो चुका है। शुरुआत में जितने भी मामले आए थे, उसमें सभी की कोई न कोई ट्रैवल हिस्ट्री जरूर थी।
  • दूसरी स्टेज में लोकल ट्रांसमिशन होता है। यानी, जो मरीज कोरोना पॉजिटिव मिला, वो खुद विदेश नहीं गया, पर ऐसे व्यक्ति के संपर्क में रहा, जो विदेश से आया था।
  • तीसरी स्टेज- कम्युनिटी ट्रांसमिशन यानी ऐसे मरीज कोरोना पॉजिटिव मिले जो न तो खुद विदेश गए, न विदेश जाने वाले व्यक्ति के संपर्क में आए।
  • चौथी और आखिरी स्टेज में कोरोना के मामले बेतहाशा बढ़ने लगते हैं। जैसा- चीन और इटली में देखा गया। ऐसा माना जा रहा है कि भारत में कोरोना पिछले 25 दिनों से दूसरी स्टेज में बना हुआ है। जिसे अच्छा संकेत माना जा रहा है।
  • यूरोपीय देशों और अमेरिका में ऐसा देखने को नहीं मिला, जब कोरोना इतने लंबे समय तक दूसरे स्टेज में रुका हो। माना जाता है कि भारत में कोराना का दूसरे स्टेज 5 मार्च के आसपास शुरू हुआ।

जमीनी हकीकत: हमारे यहां अस्पतालों में औसतन एक बेड पर 1700 मरीज
देश में कोरोना चौथी स्टेज तक पहुंचा, तो हालात बद से बदतर हो जाएंगे। ऐसे में इसे संभालना भी मुश्किल हो सकता है। क्योंकि सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि हमारे यहां अस्पताल में एक बेड पर 1700 मरीज हैं। वहीं, नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2019 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 26 हजार से भी कम सरकारी अस्पताल हैं। इनमें से 21 हजार के आसपास ग्रामीण इलाकों में और 5 हजार के आसपास शहरी इलाकों में हैं। हालांकि, शहरी इलाकों में प्राइवेट अस्पतालों की संख्या ज्यादा है। इसमें रेलवे और सेना के अस्पताल शामिल नहीं हैं। कोरोना से निपटने के लिए सरकार सेना और रेलवे के अस्पतालों का भी इस्तेमाल करेगी ही करेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत में सिर्फ 70 हजार आईसीयू बेड हैं, जबकि अस्पतालों में कुल 70 लाख बेड हैं। 

तस्वीर चेन्नई की है। यहां रेलवे ट्रेन की बोगियों के लिए मेडिकल बेड बना रहा है।

इलाज की व्यवस्था: 1400 मरीज पर एक डॉक्टर, जबकि जरूरत एक हजार पर एक की है
देश में अस्पतालों की कमी तो है ही। इसके साथ ही डॉक्टरों की भी कमी है। लोकसभा में दिए एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने बताया था कि 30 सितंबर 2019 की स्थिति के अनुसार, देश में 12 लाख के आसपास एलोपैथिक डॉक्टर हैं। अगर ये मान लें कि एक समय में इनमें से 80% यानी 9.61 लाख डॉक्टर भी मौजूद होते हैं, तो 1404 व्यक्तियों पर एक डॉक्टर होगा। ये आंकड़ा डब्ल्यूएचओ के मानक से भी कम है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर एक हजार व्यक्तियों पर 1 डॉक्टर होना चाहिए। 

नजीर: दक्षिण कोरिया में 20 हजार लोगों का रोजाना टेस्ट होता है, यह मॉडल अपना सकता है भारत
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच 5 हजार किमी से ज्यादा की दूरी है। लेकिन, कोरोना को रोकने के लिए भारत 5 हजार किमी दूर बैठे दक्षिण कोरिया से सीख भी सकता है। सबक भी ले सकता है। और उसका मॉडल भी अपना सकता है। महज 5 करोड़ की आबादी वाले दक्षिण कोरिया में कोरोना के 9 हजार से ज्यादा मामले आ चुके हैं और 139 लोग मारे जा चुके हैं। लेकिन ये आंकड़ा और भी ज्यादा हो सकता था, अगर समय रहते ये टेस्टिंग पर फोकस नहीं करता। दक्षिण कोरिया ने कोरोना से लड़ने के लिए जगह-जगह पर टेस्टिंग सेंटर बना दिए। यहां रोजाना तकरीबन 20 हजार से ज्यादा लोगों के टेस्ट होते हैं। इतना ही नहीं, इस देश में उन मरीजों को घर पर ही क्वारैंटाइन कर दिया जाता है, जिनमें संक्रमण का असर कम होता है। ताकि, ज्यादा गंभीर मरीजों के लिए अस्पताल में जगह खाली रहे। एक बात ये भी कि दक्षिण कोरिया में एकदम से कोरोना से मामले बढ़ने के बाद भी लॉकडाउन नहीं हुआ।

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