ऐसा क्या हुआ कि भारतीय शेयर बाजार कुछ देर के लिए कोरोना के असर से बाहर आ गए? – News18 हिंदी

सेंसेक्स दिन के निचले स्तर 4,714 अंक चढ़कर 34100 के ऊपरी स्तर पर बंद हुआ

शेयर बाजार में शुक्रवार के दिन पहले LOWER CIRCUIT लगा. इसके बाद आई रिकवरी के चलते सेंसेक्स-निफ्टी हरे निशान पर बंद होने मे कामयाब रहे. सेंसेक्स दिन के निचले स्तर 4,714 अंक चढ़कर 34100 के ऊपरी स्तर पर बंद हुआ है जबकि निफ्टी दिन के निचले स्तर 1,400 अंक सुधरकर 10023 के स्तर पर बंद हुआ है.

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नई दिल्ली. शेयर बाजार में ऐसी अनिश्चितता का इतिहास ढूंढे नहीं मिल रहा है. पिछले तीन दशकों में उतार चढ़ाव तो बहुत हुए हैं. लेकिन मार्च महीने के दूसरे शुक्रवार जैसा ज्वार भाटा कभी नहीं दिखा था. हद तो तब हो गई जब सवेरे बाजार खुलते ही एक बार फिर कोरोना का तर्क देते हुए बाजार लगातार फिर ढहा और दो घंटे के भीतर पांच हजार अंकों का उछाल ले गया. गौरतलब है कि पिछले कुछ हफ्तों से भारतीय शेयर बाजार की हालत नाजुक होती चली आ रही थी. कहा जा रहा था कि कोरोना के अंदेशे में विश्व की अर्थव्यवस्थाएं एक बड़े आर्थिक संकट की दहशत में आती जा रही हैं.

आखिर ऐसा क्या हुआ…

वैसे अभी भी नाजुक ही है हालत
पिछले शुक्रवार को सवेरे दस बजे सेंसेक्स 37 हजार 394 अंक पर था. एक हफ्ते बाद ठीक उसी समय वह गिरते गिरते 29 हजार 687 पर आ गया. एक हफ्ते में सात हजार से ज्यादा अंकों की यह गिरावट सनसनीखेज थी. हालत ऐसी हो गई कि बाजार में  ट्रेडिंग रोकनी पड़ी. हालांकि थोड़ी देर बाद कारोबार फिर शुरू हो गया. उधर चारों तरफ से यानी सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार और रिजर्व बैंक को फौरन मोर्चे पर आना पड़ा. इसी बीच यह ऐलान भी हुआ कि आज शाम वित्तमंत्री प्रेस कांफ्रेंस करेंगी. उधर बाजार में कारोबार फिर से शुरू होने के बाद सेंसेक्स अचानक चढ़ने लगा.इतना चढ़ा कि एक दिन में चढ़ने का भी रिकॉर्ड बन गया. वैसे यह बाजार का चढ़ना नहीं बल्कि पिछले कुछ दिनों की तबाही की थोड़ी सी भरपाई भर थी. बहरहाल दिन के अपने न्यूनतम स्तर से छह हजार अंकों की रिकवरी पर विश्लेषकों ने आश्चर्य तो जताया लेकिन यह अभी तक पता नहीं हो पा रहा है कि आखिर हो क्या गया? यहां गौर करने की बात यह है कि हफ्ते के आखिरी दिन बाजार बंद होने के बाद सेंसेक्स अपने पिछले हफ्ते के स्तर से अभी भी कोई सवा तीन हजार अंक नीचे है. यानी चौतरफा कवायद के बावजूद बाजार को संभला हुआ मानना ठीक नहीं होगा.

सरकारी कवायद ने किस तरह डाला असर
आज जब सनसनीखेज तरीके से बाजार डूब रहा था तभी मुख्य आर्थिक सलाहकार व रिजर्व बैंक की तरफ से बयान और वित्तमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस होने की चर्चा जोरशोर से शुरू हुई. यानी संदेश प्रसारित होने लगे कि सरकार जरूर कुछ करने वाली है. शेयर बाजार के लिए इतना ही काफी होता है. धारणाओं, अटकल और अफवाहों पर चलने वालेे वाले शेयर बाजार ने चमत्कारिक रूप से उठना शुरू किया. और पिछले दिन के स्तर से 1325 अंक की बढ़त के साथ बंद हुआ.लेकिन गौर करने की बात यह है कि पिछले हफ्ते की भारी दुर्गति और पिछले छह महीने की काफी तबाही की तुलना में यह बढ़त कुछ भी नहीं समझी जाएगी. इतना ही नहीं, बाजार बंद होने के बाद वित्तमंत्री की प्रेस कांफ्रेंस में भी कोई नई और बड़ी बात सामने आई नहीं है. सिर्फ यस बैंक की रीस्ट्रचरिंग और कैबिनेट के फैसलों में कर्मचारियों का महंगाई भत्ता बढ़ना या हाइवे के बारे में फुटकर ऐलानों से आगे क्या असर पड़ेगा? इसका पता दो दिन बाद शेयर बाजार खुलने पर पता चलेगा.

तब क्या कोरोना का तर्क गया समझें?
शुक्रवार को दोपहर के समय बाजार में रिकवरी इतनी ज्यादा थी कि अब यह कहना अजीब लगेगा कि बाजार पर कोरोना का असर है. सरकार की तरफ से कहा भी गया है कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद इतनी मजबूत है कि ज्यादा डरने की बात नहीं. लेकिन यह भी तो एक तथ्य है कि पिछले दिनों देश में निवेशकों ने अपने दहशत में होने का सबूत दिया है. बहरहाल, सोमवार को ही देखा जाएगा कि नई परिस्थितियां क्या बनती हैं और विश्लेशक क्या तर्क ढूंढ कर लाते हैं.

क्या फिर से वैश्विक आर्थिक मंदी को पकड़ेंगे
गौर किया जाना चाहिए कि दुनियाभर में आर्थिक मंदी की बातों के बीच सन 2008 की वैश्विक मंदी और उसके पहले 1987 की ऐतिहासिक मंदी को याद किया जाने लगा है. यह भी याद किया जाएगा कि हम 2008 की मंदी से कैसे निपटे थे.

अगर कोरोना का तर्क आगे न चला तो आखिर में वैश्विक मंदी की चर्चा पर आना ही पड़ेगा. और तब विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं मंदी के चक्रीय कारक का सहारा ले रही होंगी. हालांकि बहुत संभव है कि ये तर्क कोरे तर्क ही साबित होंगे. क्योंकि तब अर्थशास्त्रियों को यह जरूर बताना पड़ेगा कि चक्रीय कारक के प्रभावी होने का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा पाता.

हमारे लिए कुछ ज्यादा ही मुश्किल है
कुछ साल पहले तक हम अपने आपको उभरती हुई अर्थव्यवस्था कह रहे थे. इधर कोरोना फैक्टर के बहुत पहले से जिस तरह से हमारी अर्थव्यवस्था उतार पर आ गई थी उसे भुलाया नहीं जा सकता. इधर कोरोना का भविष्य अभी भले ही न पता हो लेकिन इतना तय है कि जिस तरह से दुनिया में कोरोना से बचाव के लिए सोशल आइसोलेशन यानी सामाजिक अलगाव का उपाय अपनाया जाने लगा है, इससे आर्थिक गतिविधियों पर जबर्दस्त असर पड़ेगा.

दूसरे बड़े देश तो इसका बोझ उठा लेंगे लेकिन हमारी माली हैसियत उस लायक नहीं है. जाहिर है कि वैश्विक मंदी, कोरोना के कारण दूसरे देशों में आर्थिक अवकाश और विदेशी सामान पर हमारी निर्भरता हमें बड़ी मुश्किल में डाल सकती है. खासतौर पर चीन से दवाइयों के मुख्य रसायनों यानी एपीआई का आयात करने की मजबूरी इतनी बड़ी मुश्किल है कि पहले से कोई इंतजाम न किया गया तो अफरा तफरी के हालात बनने का अंदेशा भी हमारे सामने है.

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First published: March 13, 2020, 6:48 PM IST

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