बचपन में संघ की शाखा में जाते थे मिलिंद सोमण, किताब में लिखा- वहां का मेरा अनुभव बिल्कुल अलग

बॉलीवुड डेस्क. मॉडल-एक्टर मिलिंद सोमण इन दिनों अपनी किताब ‘मेड इन इंडिया’ को लेकर चर्चा में हैं। इस किताब में उन्होंने ये भी बताया है कि बचपन में वे आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की शाखाओं में जाया करते थे। उन दिनों की यादें शेयर करते हुए सोमण ने किताब में लिखा कि उन्हें बेहद हैरानी होती है, जब संघ का कनेक्शन सांप्रदायिकता के साथ जोड़ा जाता है।

सोमण ने किताब में बताया कि वे उन दिनों मुंबई के शिवाजी पार्क स्थित शाखा या प्रशिक्षण केंद्र में जाया करते थे। उनके पिता संघ से जुड़े हुए थे और उनका मानना था कि बाल शाखा में जाने से एक युवा लड़के को अनुशासित जीवन जीने, शारीरिक रूप से फिट रहने और अच्छी सोच जैसे कई फायदे मिलते हैं। साथ ही ये एक ऐसी चीज थी जिसे पड़ोस में रहने वाले कई युवा लड़के करते थे।किताब में सोमण नेये भी बताया कि उनके पिता आरएसएस से जुड़े हुए थे और खुद को गौरवशाली हिंदू मानते थे। हालांकि उन्होंने लिखा, ‘मुझे ऐसा कुछ नहीं दिखा जिसके बारे में गर्व करना चाहिए, लेकिन दूसरी तरफ मुझे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया जिसके बारे में बहुत ज्यादा शिकायत की जा सके।’

‘मेरा अनुभव बिल्कुल अलग’

‘द प्रिंट’ के मुताबिक अपनी किताब में सोमण ने लिखा, ‘मैं आज जब संघ की शाखा को लेकर मीडिया में चल रहे प्रचार को देखता हूं, जिस तरह उस पर विध्वंसक और सांप्रदायिक होने के आरोप लगाए जाते हैं उससे मैं सचमुच हैरान रह जाता हूं। संघ की हमारी शाखा में हर शाम को 6 से 7 बजे के बीच जो कुछ भी होता था, उससे जुड़ी मेरी यादें बिल्कुल अलग हैं। हम वहां खाकी शॉर्ट्स में मार्च करते थे, योग करते थे, फैंसी उपकरणों की जगह पर पारंपरिक चीजों से खुले में कसरत करते थे, खेल खेलते, साथियों के साथ मस्ती करते, गीत गाते और संस्कृत मंत्रों का उच्चारण करते थे, जिनका मतलब हमें नहीं पता होता था।’

‘हम ट्रेकिंग करने भी जाते थे’

शाखा से जुड़ा एक औरअनुभव शेयर करते हुए सोमण ने लिखा, ‘कभी-कभी हमें मुंबई के आसपास स्थित पहाड़ियों पर ट्रेकिंग या रातभर की कैंपिंग ट्रिप पर ले जाया जाता था। हम बेसब्री से इसका इंतजार करते थे और हमें वहां बहुत मजा आता था। हम वहां जो कुछ भी करते थे, उसकी निगरानी अच्छी तरह प्रशिक्षित लोगों की एक टीम करती थी। अगर वो नहीं होते तो कुछ वयस्क लोग होते थे, जो ये मानकर वहां मदद करते थे कि वे अच्छे ‘नागरिक सैनिक’ तैयार करने में मदद कर रहे हैं। ऐसे युवा सैनिक जो बड़े होने पर अपने प्रयासों से राष्ट्र निर्माण करेंगे। जिन्हें आप देसी स्काउट कह सकते हैं। वे माता-पिता जो अपने बच्चों को वहां भेजते थे, उन्हें लगता था कि संतान को शाखा में भेजना उन्हें फिट रखने और परेशानियों से दूर रखने का ही एक तरीका है।’

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Source: DainikBhaskar.com

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