वृंदावन से बांके बिहारी ने रामलला को भेजा गुलाल, आज अयोध्या में पहली बार रंगमिलन

अयोध्या.यह पहला मौका है, जब अयोध्या में रामलला की होली वृंदावन के बांके बिहारी के भेजे गुलाल से होगी। नई परंपरा की शुरुआत करते हुए बांके बिहारी मंदिर ने रामलला को गुलाल भेजा है, जिसे रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने सोमवार को स्वीकार किया। भावविभोर दास ने कहा- ‘ब्रज से सिर्फ रंग नहीं आया, आनंद और उल्लास आया है।’ मंगलवार को जिन श्रद्धालुओं को रामलला के दर्शन का सौभाग्य मिलेगा, वे रामलला और बाकी तीनों भाइयों के गाल-मस्तक पर गुलाल भी लगा सकेंगे।

आने वाली नवरात्र में रामलला टेंट मंदिर से हटकर नए अस्थाई मंदिर में तब तक के लिए पहुंच जाएंगे, जब तक कि नया मंदिर तैयार नहीं हो जाता। रामनवमी (2 अप्रैल) को यह भी पहली बार होने जा रहा है कि देश-विदेश में बैठे लोग अस्थाई मंदिर में मनाए जा रहे राम जन्मोत्सव, पूजा-अर्चना का सीधा प्रसारण देखेंगे। सत्येंद्र दास ने बताया कि होली, रामनवमी ही नहीं, साल के सभी उत्सव ब्रज की तरह पूरे जोर-शोर से मनाए जाएं।

चतु:वैष्णव संप्रदाय के अध्यक्ष फूलडोल बिहारी दास ने वृंदावन में कहा कि बांके बिहारी की ओर से रामलला को गुलाल भेजने की जो परंपरा शुरू हुई है, इसे सतत बरकरार रखने की जरूरत है। वैसे भी राम और कृष्ण तो एक ही ठाकुर हैं। कृष्ण रससिद्ध और उत्सवधर्मी हैं, वहीं राम कुछ विरक्त और मर्यादाधर्मी। ऐसी पहल सांप्रदायिक सद्भाव और समरसता को बढ़ाने वाली ही सिद्ध होगी। इससे समाज में उत्सव की बढ़ोत्तरी होगी। कृष्ण जन्मभूमि न्यास के सचिव कपिल मिश्रा ने कहा कि कान्हा की ओर से रामलला को गुलाल भेजने की सोच बेहद प्रशंसनीय है।

इस बार वृंदावन की ठंडाई और गुजिया का भोग लगेगा
बांके बिहारी मंदिर ने रामलला के लिए गुलाल के साथ वृंदावन की खास ठंडाई और गुजिया भी भेजी है। रामजन्मभूमि के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दान ने कहा कि अभी तक रामलला को विशेष मौकों पर इलायची-दाना का भोग लगता था। अबकी बार उन्हें वृंदावन से आई ठंडाई और गुजिया का भोग लगेगा। समूचे जन्मभूमि परिसर में पहली बार होली पर खुशी के अद्भुत रंग दिखेंगे।

‘भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न का राज्य रहे ब्रज का अवध से पुराना नाता, अब बांके बिहारी ने शुरू की रंग की नातेदारी’
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सेंटर ऑफ मीडिया के डॉ. धनंजय चोपड़ा के मुताबिक,‘रसिया आयो तेरे द्वार, खबर दीजौ। यह रसिया पौरी में आयो, जाकी बांह पकर भीतर कीजौ…’ ब्रज का यह गीत आज अवध में गूंज रहा है। बांके बिहारी ने रामलला को गुलाल भेजकर अयोध्या के होरियारे रंग में अपनी आभा भी शामिल कर दी है। बरसों बाद होली चमकती-दमकती नजर आ रही है अयोध्या। सरयू की लहरें भी कुछ अधिक किलोल कर रही हैं, मानों मस्ती में गीत गा रही हों कि ‘ब्रज से आयो गुलाल अबीरा, अवध में होली खेलें रघुबीरा’। हर कोई झूम रहा है, गा रहा है। लग रहा है कि सब के सब अपने रामलला के रंग में डूब जाना चाहते हैं।

सरयू गवाह है कि अवध और ब्रज का संबंध बड़ा पुराना है। भगवान राम के अनुज शत्रुघ्न ने ब्रज पर राज किया था। ब्रज चौरासी कोस परिक्रमा का पड़ाव जिस गली बारी के शत्रुघ्न मंदिर पर होता है, वह बहुत पौराणिक महत्व रखता है। महोली गांव का कुंड शत्रुघ्न की कथाएं कहता है। यही नहीं, अयोध्या के कनक भवन का नाता उस रसिक समाज से है, जो ब्रज में रहकर बांके बिहारी के रस में डूबा रहता है। ब्रज और अयोध्या के रिश्तों को और बेहतर ढंग से समझना हो तो हमें जयदेव के गीत-गोविंद के पृष्ठों को बहुत रस के साथ दोहराना होगा। और, पहली बार आज जब बांके बिहारी ने गुलाल भेजकर ब्रज और अवध की नातेदारी की याद दिलाई तो पूरी अयोध्या मानों संग-संग गा उठी है कि ‘होली खेलें रघुरैया, अवध में बाजे बधैया।’

बांके बिहारी मंदिर के गुलाल से जिस रंग की छटा बिखरेगी, वह अद्भुत तो होगी ही, संस्कृति और परंपरा की सदियों से चली आ रही यात्रा के जारी रहने का प्रमाण भी प्रस्तुत करेगी। हम सब इस अप्रतिम क्षण के साक्षी हैं और संवाहक भी। उम्मीद रखें कि होली के रंग में सराबोर सौहार्दकी हमारी अयोध्या हमारे संग-संग सदा बनी रहेगी। इस होली के मायने कुछ अलग ही हैं क्योंकि राम जन्मभूमि में जल्द ही भव्य मंदिर की नींव पड़ने जा रही है।

आस्था में घुला पौराणिक संबंधों का उजला रंग

इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा कि अस्थाई मंदिर में जाने से पहले श्रीरामलला बांके बिहारी के गुलाल में रंग जाएं। वृंदावन को अयोध्या में रंगमिलन का बेसब्री से इंतजार है।’ – अशोक कुमार गोस्वामी, सेवाधिकारी, श्री बांके बिहारी मंदिर।

अयोध्या और ब्रज की यह रंगभरी नातेदारी दुनियाभर में रंगपर्व का मान बढ़ाएगी। ब्रज से विशेष भेंट पाकर रामलला निश्चित रूप से प्रफुल्लित होंगे।’ – सत्येंद्र दास, मुख्य पुजारी, श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या।

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श्री बांके बिहारी, वृंदावन (बाएं) और श्री रामलला, अयोध्या।

Source: DainikBhaskar.com

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