पिता माधवराव सिंधिया के नक्शेकदम पर ज्योतिरादित्य, कांग्रेस को अलविदा – आज तक

मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का ‘हाथ’ छोड़ दिया है. सिंधिया ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने ट्विटर पर इस्तीफे का ऐलान किया. कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका माना जा रहा है. बता दें इस्तीफा देने से पहले सिंधिया ने गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से प्रधानमंत्री आवास पर मुलाकात की.

कांग्रेस छोड़ने के साथ ही सिंधिया ने अपना आगे का रास्ता तय कर लिया है. सिंधिया बीजेपी में शामिल हो रहे हैं. ज्योतिरादित्य का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है, जब पूरा देश होली मना रहा है और साथ ही उनके स्वर्गवासी पिता व पूर्व नेता माधवराव सिंधिया की जयंती है. पिता की जयंती के मौके पर ज्योतिरादित्य ने जो फैसला लिया है, वो ठीक उन्हीं के नक्शेकदम को जाहिर कर रहा है. साल 1993 में जब माधवराव सिंधिया ने खुद को उपेक्षित महसूस किया तो कांग्रेस छोड़कर अलग पार्टी ही बना ली थी.

ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया की आज 75वीं की जयंती है. माधवराव सिंधिया भी कभी कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेताओं में शुमार थे लेकिन पार्टी में उपेक्षित होकर उन्होंने भी कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और अपनी अलग पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी.

जब पिता माधवराव हो गए थे कांग्रेस से अलग

1993 में जब मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह की सरकार थी तब माधवराव सिंधिया ने पार्टी में उपेक्षित होकर कांग्रेस को अलविदा कह दिया था और अपनी अलग पार्टी मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस बनाई थी. हालांकि बाद में वे कांग्रेस में वापस लौट गए थे.

वहीं 1967 में जब मध्य प्रदेश में डीपी मिश्रा की सरकार थी तब कांग्रेस में उपेक्षित होकर राजमाता विजयराजे सिंधिया कांग्रेस छोड़कर जनसंघ से जुड़ गई थीं और जनसंघ के टिकट पर गुना लोकसभा सीट से चुनाव भी जीती थीं. मौजूदा सियासी हलचल के बीच आज एक बार फिर से इतिहास ने खुद को दोहरा दिया. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी अपने पिता और दादी की तरह कांग्रेस से अलग होने का ऐलान कर दिया.

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हालांकि, इस सियासी ड्रामे की पटकथा 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद ही लिखी गई थी. उस चुनाव में प्रबल दावेदार होने के बावजूद मुख्यमंत्री बनने से चूक जाने के बाद से ज्योतिरादित्य सिंधिया बाद में प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते थे, मगर दिग्विजय सिंह के रोड़े अटकाने के कारण नहीं बन पाए. फिर उन्हें लगा कि पार्टी आगे राज्यसभा भेजेगी, मगर इस राह में भी दिग्विजय सिंह ने मुश्किलें खड़ीं कर दीं.

पार्टी में लगातार उपेक्षा होते देख सिंधिया ने बीजेपी के कुछ नेताओं से भी संपर्क बढ़ाना शुरू कर दिया. इसी सिलसिले में बीते 21 जनवरी को शिवराज सिंह चौहान और सिंधिया की करीब एक घंटे तक मुलाकात चली थी. उसी दौरान सिंधिया की बीजेपी से नजदीकियां बढ़ने की चर्चा चली थी. अंतत: सिंधिया ने बड़ा फैसला करते हुए कांग्रेस को अलविदा कह दिया है.

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