अबकी बार, REGIMENT में महार, पढ़ें भारतीय सेना की पहली मशीनगन रेजीमेंट की गाथा – Zee News Hindi

नई दिल्ली: ये एक ऐसी रेजीमेंट (Regiment) है जिसने ब्रिटिश साम्राज्य के कई मिथक तोड़े और खुद को उस मुकाम तक पहुंचाया जो तय किया था. इसने अंग्रेज़ों की मार्शल जातियों की धारणा को चुनौती दी और उसे गलत साबित किया. इसने देश की पहली मशीनगन रेजीमेंट बनने का गौरव हासिल किया. इस रेजीमेंट में आज पूरे भारत के जवान भर्ती होते हैं. युद्धघोष बोलो हिंदुस्तान की जय है. नाम महार रेजीमेंट (Mahar Regiment) है. ये अपने क्रेस्ट पर पहनते हैं एक विकर मशीनगन. इस रेजीमेंट को भारतीय सेना को दो सेनाध्यक्ष जनरल के वी कृष्णाराव और जनरल के सुंदरजी देने का गौरव हासिल है.  

महार जवानों का सैनिक सेवा का लंबा इतिहास रहा है जिसकी शुरुआत शिवाजी महाराज की सेना से होती है. ईस्ट इंडिया कंपनी ने 18 शताब्दी में महार जवानों को अपनी सेना में भर्ती करना शुरू किया लेकिन 1857 की क्रांति के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सेना में भर्ती में बदलाव शुरू किया. कुछ जातियों को मार्शल माना गया और जो जातियां इनमें नहीं आती थीं. उन्हें नॉन मार्शल मानकर उनकी भर्ती बंद कर दी. जब 1885 में लॉर्ड्स रॉबर्ट्स सेना के कमांडर इन चीफ बने तो उन्होंने इस थ्योरी पर ज्यादा जोर देना शुरू कर दिया. 1892 में महार रेजीमेंट को क्लास रेजीमेंट न मानकर भंग कर दिया गया. महारों ने इसे 100 साल की सैनिक सेवा के बाद अंग्रेजी सरकार का धोखा माना.

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान दोबारा महार जवानों की भर्ती शुरू हुई लेकिन युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया. गोपाल कृष्ण गोखले और भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं ने महार रेजीमेंट को दोबारा खड़ा करने के लिए अंग्रज़ों पर लगातार दबाव बनाया और अक्टूबर 1941 को बेलगाम में पहली महार बटालियन का गठन किया गया. गठन के तुरंत बाद दूसरे विश्व युद्ध में महार रेजीमेंट ने बर्मा के मोर्चे पर जापानियों के खिलाफ मोर्चा संभाल लिया. 1946 में महार रेजीमेंट को भारतीय सेना की पहली मशीनगन रेजीमेंट बनाया गया. यानि ऐसी रेजीमेंट जो उस समय का सबसे घातक हथियार मशीनगन से लैस की गई. 

विकर मशीनगन को अंग्रेजी सेना ने पहले विश्वयुद्ध के दौरान 1912 में अपनी सेना में शामिल किया था और जल्द ही ये सबसे पंसदीदा भारी हथियार बन गई. 1916 में एक ब्रिटिश मशीनगन टुकड़ी ने 10 विकर मशीनगनों से 12 घंटे तक लगातार फायरिग की. इस दौरान उन्होंने 100 बैरलों की मदद से 10 लाख राउंड फायर किए और एक भी राउंड मिस नहीं हुआ. ब्रिटिश सेना में मशीनगन कोर होती थी और उसे ज़रूरत के हिसाब से हर मोर्चे पर मशीनगनर्स भेजने होते थे. इसी तर्ज पर 1946 में महार रेजीमेंट को भारतीय सेना की पहली मशीनगन रेजीमेंट बना दिया गया जो 1963 तक बनी रही. 

शुरुआत में महार रेजीमेंट में होती थी केवल महार नौजवानों की ही भर्ती
महार रेजीमेंट के क्रेस्ट में दो विकर मशीनगनों के बीच एक मराठा शैली की कटार होती है. ये क्रेस्ट भी कोरेगांव स्तंभ से बदलते हुए इस शक्ल तक पहुंचा है. क्रेस्ट और हैकल महार रेजीमेंट के जवान की वर्दी को खास अंदाज देते हैं. महार रेजीमेंट आज किसी दूसरी इंफेंट्री रेजीमेंट की ही तरह स्टैंडर्ड रेजीमेंट है. ये सैनिक केवल मशीनगन नहीं हर हथियार में महारत हासिल करते हैं. रेजीमेंट की वारक्राई यानि यु्द्धघोष भी समय के साथ-साथ बदलता रहा. शुरुआत में ये युद्धघोष महार की जय था जिसे बाद में हर-हर महादेव किया गया. इस युद्धघोष से महार सैनिकों के मराठा सेना से पुराने संबंध का पता चलता था. जब इस रेजीमेंट को ऑल इंडिया रेजीमेंट बनाया गया तो इसका केवल एक ही युद्धघोष हो सकता था. 

शुरुआत में महार रेजीमेंट में केवल महार नौजवानों की ही भर्ती होती थी. 1963 में जब महार रेजीमेंट को दूसरी इंफेंट्री रेजीमेंट की तरह बनाया गया तो इसे पूरे भारत के नौजवानों की भर्ती शुरू हो गई. महार रेजीमेंट ने कभी बहुत पहले ही अंग्रेजों के मार्शल और नॉन मार्शल सिद्धांत को चुनौती दे दी थी. इसलिए जब नई बटालियनें बनी तो उनमें उड़िया, बंगाली और गुजराती नौजवानों की भर्ती की गई जिनपर कभी अंग्रेजों ने नॉन मार्शल रेस का ठप्पा लगाया था. आज महार रेजीमेंट में  पूरे भारत के नौजवान शामिल होते हैं और रेजीमेंट को इस पर गर्व है. भारत के हर हिस्से से आने वाले नौजवानों को दिन में तीन बार पौष्टिक खाना खिलाना एक बड़ा काम है. ध्यान ये भी रखना है कि खाना सबको पसंद भी आए. यहां किचन में मॉडर्न तकनीक इस काम में मदद करती है. रोटीमेकर से एक घंटे में 800 रोटियां बनाई जा सकती हैं और ये तीन घंटे तक लगातार रोटियां बना सकती है. भारतीय सेना दुनिया की उन गिनी-चुनी सेनाओं में से है जो हर परिस्थित में हर जवान को गरम और ताज़ा खाना मुहैया कराती है. 

मलखंभ में महार रेजीमेंट के सैनिकों की महारत
महार रेजीमेंट में 21 रेगुलर बटालियनों के साथ-साथ 3 राष्ट्रीय राइफल्स बटालियन भी हैं. मलखंभ में महार रेजीमेंट के सैनिकों की महारत इतनी है कि किसी सैनिक समारोह में अगर मलखंभ के प्रदर्शन की जरूरत होती है तो इसके लिए महार रेजीमेंट को ही याद किया जाता है. लेकिन इसके लिए बहुत कड़ी मेहनत की ज़रूरत होती है. कड़ी मेहनत यहां की परंपरा है और नए रिक्रूट को बहुत जल्द इसकी आदत हो जाती है. अनसुइया प्रसाद ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में केवल अपना बलिदान दिया था और उस समय उनको महार रेजीमेटं में आए केवल 10 दिन हुए थे. यहां अनसुइया प्रसाद ग्राउंड में नए रिक्रूट को उस्ताद परेड के सबक दे रहे हैं. ये सबक सख्त हैं लेकिन जरूरी हैं. इन्हें कल महार रेजीमेंट में अपनी जगह लेनी है और वीरता की परंपरा को आगे ले  जाना है. 

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