योगीराज में लखनऊ में लगे सीएए विरोधी प्रदर्शन में तोड़फोड़ करने वाले उपद्रवियों के नाम-पते-तस्वीर वाले बैनर

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अधिकारियों ने राज्य में नागरिक विरोधी कानून (सीएए) के विरोध में आयोजित धरने-प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों की तस्वीरों वाले बैनर सड़क किनारे लगाए हैं। प्रशासन के इस कदम ने उन लोगों के बीच नाराजगी पैदा कर दी है जिनका नाम इस तरीके से सार्वजनिक किया गया है।

एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राजधानी लखनऊ की प्रमुख सडकों के क्रॉसिंग पर बैनर लगे थे।

इनमें सीएए के खिलाफ दिसंबर में आयोजिय विरोध प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपी 53 लोगों की तस्वीरें, नाम और पते शामिल हैं।

पोस्टर में दिख रहे कुछ कार्यकर्ताओं ने कहा है कि वे अपने खिलाफ आरोप साबित होने से पहले किये गए इस “सार्वजनिक अपमान” को लेकर अदालत का रुख करेंगे।

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों ने प्रदर्शनकारियों को दोषी ठहराने को लेकर सरकार पर निशाना साधा।

मुख्यमंत्री के निर्देश पर लगाए गए पोस्टर

एक अधिकारी ने इस बात की पुष्टि की कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर राजधानी लखनऊ की एक प्रमुख सड़क के क्रॉसिंग पर बैनर लगे थे। डीएम अभिषेक प्रकाश ने निर्देश दिया है कि नोटिस जारी करने की तिथि के 30 दिन के भीतर अगर दोषी पाए गए लोगों ने कलेक्ट्रेट कोषागार में जुर्माना जमा नहीं किया तो उनकी संपत्ति कुर्क कर रकम वसूली जाएगी। रिकवरी की जानकारी देने के लिए ठाकुरगंज, कैसरबाग, हजरतगंज और खदरा इलाके में जगह-जगह दोषी पाए गए लोगों के पोस्टर चस्पा करवाए जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि पोस्टरों उन लोगों की तस्वीरें और जानकारी सार्वजनिक की गई है जिन्होंने विरोध प्रदर्शन के बहाने सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, और उन्हें पहले ही जुर्माने के लिए नोटिस जारी किए जा चुके हैं।

खदरा में हुई हिंसा में 13 लोगों से 21,76,000 रुपये की, परिवर्तन चौक पर हुई हिंसा में 24 लोगों से 69,65,000 रुपये की, ठाकुरगंज में हुई हिंसा में 10 लोगों से 67,73,900 रुपये की और कैसरबाग में 06 लोगों से 1,75,000 रुपये की वसूली होनी है।

पोस्टरों में कहा गया है कि यदि वे मुआवजे का भुगतान करने में विफल रहते हैं तो अभियुक्तों की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी।

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की फाइल फोटोReuters

सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ सदफ जाफर, जो उन लोगों में से हैं जिनकी तस्वीरें पोस्टरों पर दिखाई गई हैं, ने इस कदम को अनैतिक करार देते हुए कानूनी सहारा लेने की बात कही।

उन्होंने कहा, “आखिर हमे किस तरह से उस अपराध के लिए सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा सकता है जो अदालत में साबित ही नहीं हुआ है।”

जाफर ने पीटीआई से कहा, यह अफगानिस्तान नहीं है। कानूनी मुद्दों को इस तरह से सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। हमारे जमानत आदेश में कहा गया है कि हमारे खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

उन्हें लखनऊ में हुई हिंसा के बाद गिरफ्तार किया गया था और बाद में अदालत ने उन्हें जमानत दे दी।

उन्होंने कहा, ” हम फरार नहीं हैं और जब भी अदालत या पुलिस द्वारा उन्हें बुलाया गया है वे पेश हुई हैं।”

“हमें इस तरह से क्यों निशाना बनाया जा रहा है? क्या उन्होंने सभी हवाई अड्डों पर विजय माल्या और नीरव मोदी के पोस्टर लगाए थे? अगर उन्होंने ऐसा किया होता तो वे देश के धन के साथ भाग नहीं पाते,”उसने दो भगोड़े व्यापारियों का जिक्र करते हुए कहा।

पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी ने भी सरकार के इस कदम को अवैध बताया है।

उन्होंने कहा, “इन पोस्टरों को लगाकर हमारे जीवन, संपत्ति और स्वतंत्रता को खतरे में डाल दिया गया है और हमारी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा है।”

दारापुरी ने कहा कि वह राज्य के गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक और पुलिस आयुक्त को लिख रहे हैं कि वे बताएं कि अगर उन्हें पोस्टरों की वजह से कोई परेशानी हुई तो यह प्रशासन की ज़िम्मेदारी होगी।

दारापुरी ने कहा, “हम इसे सामूहिक रूप से अदालत में चुनौती देंगे और पोस्टरों को तुरंत वापस लेने और इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।”

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पूछा कि सरकार सार्वजनिक रूप से किसी को अदालत के आदेश के बिना अपराधी घोषित कैसे कर सकती है।

सरकार के इस कदम को गैरकानूनी बताते हुए कांग्रेस ने कहा कि सरकार न सिर्फ लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का मजाक बना रही है बल्कि अदालत के फैसले को खुलेआम चुनौती दे रही है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने कहा कि कई अदालतों ने अपने फैसले में कहा है कि इस आंदोलन में हुई हिंसा और आगजनी में हुए संपत्ति के नुकसान के आकलन का हक पुलिस-प्रशासन नहीं बल्कि अदालत को है। यह अदालत की अवमानना है, कोर्ट को इसका संज्ञान लेना चाहिए।

उन्होंने कहा कि जिन लोगों का पोस्टर लखनऊ में चिपकाकर योगी आदित्यनाथ की सरकार मानसिक उत्पीड़न कर रही है, उन आंदोलनकारियों के खिलाफ अदालत में कोई मजबूत सबूत नहीं मिला और जज ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी।

लल्लू ने कहा कि सूबे के मुख्यमंत्री एक साम्प्रदायिक गिरोह के सरगना रहे हैं। उनके संगठन और उनके ऊपर न जाने कितने साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने के मुकदमे दर्ज है। अगर क्षतिपूर्ति का यही तरीका है तो सबसे पहले इसकी शुरुआत योगी को खुद करके उदाहरण पेश करना चाहिए।

Source: DainikBhaskar.com

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