जानिए, किस तरह अस्तित्व में आया तालिबान, जिससे समझौते को मजबूर हुआ अमेरिका – दैनिक जागरण

दोहा/वाशिंगटन/कंधार,एजेंसी। अमेरिका ने आतंकी संगठन तालिबान के साथ शनिवार को ऐतिहासिक समझौता किया है। इसके बाद अगले 14 महीनों में सभी अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान छोड़ देंगे। तालिबान ने 1996 और 2001 के बीच अफगानिस्तान पर शासन किया। हालांकि सत्ता से बेदखली और विद्रोह शुरू करने से पहले तालिबान ने देश में सख्त इस्लामिक शरिया कानून लागू किया। तालिबान ने अफगानिस्तान को आग में झोंक दिया। ऐसे वक्त में तालिबान के बारे में जानना जरूरी है। पेश है एक नजर:

तालिब से बना तालिबान

1979-1989 के सोवियत कब्जे के दौरान अफगानिस्तान से भागकर के पाकिस्तान के मदरसों सुन्नी इस्लामिक स्कूलों में पढ़ने वाले युवा अफगानों के बीच तालिबान अस्तित्व में आया। छात्र के लिए अरबी में तालिब शब्द है। इसी से तालिबान बना।

खूंखार आतंकी मौलाना उमर

पिछली सदी के नौवें दशक की शुरुआत में, अफगानिस्तान में गृहयुद्ध के दौरान अराजकता और भ्रष्टाचार के बीच तालिबान का गठन एक आंख वाले मौलाना उमर के नेतृत्व में कंधार के दक्षिणी प्रांत में किया गया। उमर 2013 में अपनी मृत्यु तक इस आतंकी संगठन का सरगना रहा।

तालिबान में पश्तून लड़ाके

मौलाना उमर का पश्तून जातीय समूह पर शक्तिशाली प्रभाव था, जिससे ज्यादातर तालिबान लड़ाके आते हैं। तालिबान की कमान अब हैबतुल्ला अखुंदजादा के पास है, जबकि तालिबान का सह-संस्थापक मुल्ला बरादर राजनीतिक विंग का प्रमुख है।

अमेरिका ने भी किया इस्तेमाल

तालिबान आतंकियों का रूस के खिलाफ इस्तेमाल अमेरिका ने भी किया था। बाद में हालांकि परिस्थितियां ऐसी बनीं कि तालिबान और अमेरिका आमने-सामने आ गए। तालिबान आतंकियों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने में सबसे आगे पाकिस्तान रहा है।

इस तरह शहरों पर किया कब्जा

अक्टूबर 1994 में तालिबान ने लगभग बिना लड़े कंधार शहर पर और उसके बाद 27 सितंबर, 1996 को राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया। राष्ट्रपति बुरहानुद्दीन रब्बानी पहले ही भाग गए। तालिबान के लड़ाकों ने संयुक्त राष्ट्र कार्यालय से पूर्व कम्युनिस्ट राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह को घसीटकर निकाला जिन्होंने वहां पर शरण ले रखी थी। इसके बाद उन्हें यातना देकर फांसी दे दी गई।

तालिबानी सत्ता में लगे प्रतिबंध

तालिबान ने सत्ता पर काबिज होते ही शरिया और इस्लामिक कानून को सख्ती से लागू किया। संगीत, टीवी और पतंग उड़ाने जैसे कार्यो पर प्रतिबंध लगा दिया गया। लड़कियों के स्कूल बंद कर दिए गए, जबकि महिलाओं को काम करने से रोक दिया गया। साथ ही बेहद सख्त और क्रूर सजाएं दी गई।

80 फीसद देश, 3 देशों की मान्यता

1998 तक तालिबान के पास 80 फीसद देश का नियंत्रण था, लेकिन केवल पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब द्वारा कानूनी सरकार के रूप में मान्यता प्राप्त थी। मार्च 2001 में मध्य बामियान घाटी में बुद्ध की 1,500 साल पुरानी विशाल प्रतिमाओं को उड़ा दिया।

अफगानिस्तान में अमेरिका

2001 में 9/11 के आतंकी हमलों के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका के नेतृत्व वाले गठबंधन ने अल-कायदा को निशाना बनाया था। तब से अफगानिस्तान में अमेरिका का सीधा दखल है। आइए जानते हैं कि काबुल में अमेरिका की पिछले दो दशक के दौरान सक्रियता के अहम पड़ाव क्या रहे।

2001

11 सितंबर के हमले के एक महीने से भी कम समय में अमेरिका ने (सात अक्टूबर को ) अफगानिस्तान में ‘एंड्योरिंग फ्रीडम’ ऑपरेशन शुरू किया। तालिबान शासन अल कायदा सरगना ओसामा बिन लादेन और अन्य आतंकियों को पनाह दे रहा था, जिसने अमेरिका में हुए हमलों को अंजाम दिया था।

2003

अमेरिका ने इराक में सद्दाम हुसैन के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए बगदाद पर हमला बोल दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि अमेरिका का अफगानिस्तान पर ध्यान हट गया।

2008

तालिबान और अन्य इस्लामी संगठनों ने दक्षिणी और पूर्वी अफगानिस्तान में अपने गढ़ मजबूत किए। इन क्षेत्रों से तालिबानी आतंकियों की पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में अपने ठिकानों के बीच आसानी से आवाजाही होने लगी। इसके बाद बुश प्रशासन ने लगभग 48,500 अमेरिकी सैनिक अफगानिस्तान में तैनात किए।

2009

इराक और अफगानिस्तान युद्ध अभियान को समाप्त करने के वादे पर निर्वाचित राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अमेरिकी तैनाती को लगभग 68,000 तक कर दिया। दिसंबर में 30,000 सैनिक और भेजे गए।

2010

1,50,000 से ज्यादा विदेशी सैनिक अफगानिस्तान में तैनात किए गए। इनमें से करीब एक लाख अमेरिकी थे।

2011

2 मई को अमेरिका के विशेष बल ने पाकिस्तान में विशेष ऑपरेशन के दौरान ओसामा बिन लादेन को मार गिराया।

2014

31 दिसंबर 2014 को अफगानिस्तान में नाटो ने अपने मिशन को बंद कर दिया। हालांकि कुछ महीनों बाद समझौतों के तहत, 12,500 विदेशी सैनिक बने रहे।

2015

अफगानिस्तान में इस्लामिक स्टेट भी साल की शुरुआत में सक्रिय हो उठा। इसके चलते अमेरिका की चिंता बढ़ गई।

2016

जुलाई 2016 में, ओबामा ने अमेरिकी सैनिकों की वापसी की सुनियोजित गति को धीमा करते हुए कहा कि 8,400 सैनिक 2017 में बने रहेंगे।

2017

अप्रैल 2017 में अमेरिकी सेना ने सबसे बड़ा गैर-परमाणु बम गिराया। इसमें 96 आतंकियों के मारे जाने का दावा किया गया। इसी साल अगस्त 2017 में नए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने नवंबर के मध्य में तैनात 11,000 सैनिकों के बाद 3,000 सैनिक और भेजे।

2018

साल के मध्य में वाशिंगटन और तालिबान के प्रतिनिधियों ने बातचीत की।

यह कई बार हुई और कुछ कारणों से रोकी गई। 28 नवंबर को ट्रंप ने कहा कि वह सैनिकों को कम करने के लिए तैयार हैं।

2020

13 फरवरी 2020 को समझौते का मार्ग प्रशस्त हुआ। 29 फरवरी को अमेरिका ने 14 महीने के भीतर अफगानिस्तान से पूर्ण सैन्य वापसी के लिए समय सारिणी तय करते हुए तालिबान के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किए।

Posted By: Bhupendra Singh

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