गुजरात के वो CM जिन्हें छात्रों के गुस्से की वजह से गंवानी पड़ी कुर्सी

छात्र आंदोलन की वजह से चिमनभाई पटेल को इस्तीफा देना पड़ा था.

गुजरात में कई विकास कार्यों की नींव रखने वाली चिमनभाई पटेल (Chiman Bhai Patel) को 1974 में छात्र आंदोलन की वजह से अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.

News18Hindi
Last Updated:
February 17, 2020, 11:58 AM IST

Share this:

साल 1973 में दिसंबर का महीना था. अहमदाबाद के लालभाई दलपतभाई इंजीनियरिंग कॉलेज की हॉस्टल मेस की फीस में एकाएक 20 प्रतिशत का इजाफा कर दिया गया. खाने की फीस बढ़ने वजह से छात्र आक्रोशित हो गए. फिर क्या था, छात्रों ने इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया. इसके करीब 13 दिनों बाद गुजरात यूनिवर्सिटी में ऐसा ही एक प्रदर्शन शुरू हो गया. प्रदर्शन की वजह से पुलिस और छात्रों के बीच झड़प हुई और फिर 7 जनवरी को छात्र आमरण अनशन पर बैठ गए. ये आमरण अनशन गुजरात के कई शिक्षण संस्थानों में हो रही थी.छात्रों का ये आंदोलन बड़ा रूप लेता चला गया. बाद में इसमें टीचर्स और वकील भी शामिल हो गए और नव निर्माण युवक समिति की स्थापना कर मुख्यमंत्री का इस्तीफा मांगना शुरू किया. आंदोलन की चपेट में पूरा गुजरात आ गया था. 25 जनवरी को पूरे गुजरात में पुलिस और आंदोलनकारियों के बीच झड़पें हुईं. स्थिति इतनी बिगड़ गई कि राज्य की स्थिति संभालने के सेना बुलानी पड़ी. हालत बेकाबू होते देख देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुख्यमंत्री से 9 फरवरी को इस्तीफा ले लिया. इन मुख्यमंत्री का नाम था चिमन भाई पटेल. लेकिन चिमन भाई के इस्तीफे के पीछे सिर्फ आंदोलन जिम्मेदार नहीं था. कहानी कुछ और भी थी.चिमनभाई दो बार मुख्यमंत्री बने और दोनों बार अपनी कुर्सी नहीं बचा पाए. चिमनभाई, पटेल थे. पटेलों का गुजरात की राजनीति में कितना वर्चस्व है, बताने की जरूरत नहीं है. 1973 में चिमनभाई गुजरात के मुख्यमंत्री थे. चिमनभाई के तेवर इतने तल्ख थे कि इंदिरा गांधी के सामने मुख्यमंत्री बनने से पहले ही ऊंची आवाज में बात कर चुके थे. उस दौर में इंदिरा गांधी के साथ इस तरह की बात कोई नहीं करता था. इंदिरा राजनीतिज्ञ थीं, उन्होंने इस ‘बेअदबी’ का अपने समय से जवाब दिया. इंदिरा का जवाब कुछ ऐसा था कि चिमनभाई संभल ही नहीं पाए.छात्रों के आंदोलन की वजह से ‘चिमन चोर’ कहलाए जा रहे चिमन भाई को सत्ता छोड़नी पड़ी. गुजरात भर में चल रहे इस आंदोलन को देखकर ही जेपी यानी जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए हां किया. चिमनभाई से इंदिरा गांधी ने इस्तीफा तो ले लिया मगर इमरजेंसी की आंच में वो खुद भी सत्ता से बेदखल हो गईं. इसके बाद इंदिरा को वापसी करने में जहां महज तीन साल लगे, चिमनभाई 16 साल बाद वापस आ पाए.जब दूसरी बार बने मुख्यमंत्रीअस्सी के पूरे दशक में चिमनभाई और पटेल राजनीति हाशिए पर रही. 4 मार्च 1990 को चिमनभाई फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री बने. इसबार सरकार जनता दल और भारतीय जनता पार्टी की साझा सरकार थी. याद रखिए ये वही दौर था जब हिंदुस्तान में वीपी सिंह के मंडल और बीजेपी के मंदिर वाले कमंडल की राजनीति चल रही थी. जनता दल और बीजेपी का साथ छूटा तो चिमनभाई की सरकार खतरे में आ गई. चिमनभाई ने कांग्रेस के 34 बागी विधायकों को मिलाकर अपनी सरकार बना ली. चिमन भाई ने अपने इस टर्म में कई बड़े फैसले लिए. चिमनभाई पटेलचिमनभाई हिंदुस्तान के पहले मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने गौ हत्या पर कानून बनाकर बैन लगाया. चिमनभाई ने ही हिंदू और जैन त्योहारों पर मीट की बिक्री रुकवाई. उनके खाते में ही गुजरात के बंदरगाहों, रिफाइनरी और पावर प्लांट में प्राइवेट कंपनियों के साथ साझेदारी शुरू कर गुजरात के विकास की नींव रखने का श्रेय है.
अपने दूसरे कार्यकाल में चिमनभाई ने नर्मदा को गुजरात की लाइफलाइन मानते हुए सरदार सरोवर प्रोजेक्ट को पूरा करवाने पर काम किया. ये बांध उसी समय से विवादों में था और 1994 में 17 फरवरी को अचानक चिमनभाई की मौत हो गई. इसके बाद सरदार सरोवर बांध के विवाद बढ़ते रहे और जब तक सुलझे चिमनभाई की राजनीति को सामने से देखने वाली पीढ़ी मार्ग दर्शक बन चुकी थी.ये भी पढ़ें:शादीशुदा जिंदगी से बाहर गालिब के प्यार के किस्से, मेहबूबा की मौत पर लिखी थी ये गजलजंगल के 15 कड़े कानून तोड़ने वाले को बना दिया कर्नाटक का वनमंत्री, जानें कौन हैं ये शख्सबीजेपी की फायरब्रांड नेता सुषमा स्वराज को क्यों था ज्योतिष पर इतना भरोसा

News18 Hindi पर सबसे पहले Hindi News पढ़ने के लिए हमें यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर पर फॉलो करें. देखिए नॉलेज से जुड़ी लेटेस्ट खबरें.

First published: February 17, 2020, 11:54 AM IST
Source: News18 News

Related posts