जस्टिस डीवाई चंद्रचू़ड़ बोले, मतभेद लोकतंत्र का मूल तत्व लेकिन राष्ट्र विरोधी न हो

Publish Date:Sat, 15 Feb 2020 10:59 PM (IST)

अहमदाबाद, एजेंसी। किसी मसले पर मतभेद होना और उसे उजागर करना लोकतंत्र का मूल तत्व है। इसके जरिये जनभावना सामने आती है। लेकिन जब यही विरोध प्रदर्शन देश के हृदय स्थल पर राष्ट्रविरोधी या लोकतंत्र के खिलाफ आंदोलन में तब्दील हो जाए तो वह संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ होता है। यह बात सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख न्यायाधीशों में शुमार जस्टिस डीवाई चंद्रचू़ड़ ने कही है। जाहिर है उनका इशारा देश के विभिन्न हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के विरोध में हो रहे आंदोलनों को लेकर था।

Supreme Court judge Justice DY Chandrachud: A State, committed to the rule of law, ensures that State apparatus isn’t employed to curb legitimate and peaceful protests but to create spaces conducive to deliberations. https://t.co/D7p4P5xZw2″ rel=”nofollow
— ANI (@ANI)
February 15, 2020

एकाधिकार की बात करना उचित नहीं
15 वें जस्टिस पीडी देसाई मेमोरियल व्याख्यान में जस्टिस चंद्रचू़ड़ ने कहा, मतभेदों को उजागर होने से रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल भी कानून व्यवस्था का उल्लंघन है। उन्होंने कहा, मतभेद उचित हैं, लेकिन ध्यान रहना चाहिए जब लोकतांत्रिक ढंग से चुनी हुई सरकार विकास और सामाजिक समन्वय की योजना पेश कर रही हो तब मिश्रित समाज वाले देश में एकाधिकार की बात करना उचित नहीं है।

मतभेद ‘सेफ्टी वाल्व’ की मानिंद
जस्टिस चंद्रचू़ड़ ने कहा कि मतभेदों और सवालों को महत्व न देने से देश में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेद ‘सेफ्टी वाल्व’ की मानिंद हैं जिनसे होकर जनभावना सामने आती है और सरकार को उनके अनुसार नीतियों में सुधार करने का संदेश मिलता है। लेकिन यह सब संविधान के दायरे में होना चाहिए।  

इससे पहले 9 जनवरी को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने इस कानून को लेकर देशभर में हो रहे हिंसक प्रदर्शन पर चिंता जताई थी और कहा था कि हिंसा रुकने पर ही वे सुनवाई करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने 18 दिसंबर को नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर परीक्षण करने का निर्णय लेते हुए सरकार को नोटिस जारी किया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने उस दिन अधिनियम पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था।
Posted By: Arun Kumar Singh

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Source: Jagran.com

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