वाराणसी: इस मठ में मुगल शासकों ने लिखे हैं फरमान, पहली बार पहुंच रहे पीएम मोदी

वाराणसी. काशी, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां का कंकर कंकर शंकर हैं. शिव ही यहां धर्म हैं, कर्म हैं और मर्म भी. उसी काशी (Kashi) में एक ऐसा मठ और मंदिर है, जहां एक शिवालय है. उसी शिवालय से पहली बार 16 फरवरी को अपने वाराणसी दौरे के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) रूबरू होंगे. इस शिवालय के धार्मिक और सामाजिक महत्व के साथ पीएम मोदी छठी शताब्दी के ताम्रपत्रों मे दर्ज इस ऐतिहासिक जगह के इतिहास से रूबरू होंगे. जिसमे दर्ज है कि किस तरीके से समय-समय पर मुस्लिम शासकों ने इसको लेकर पत्र लिखे हैं. पीएम मोदी वाराणसी पहुंचकर सबसे पहले इसी मठ में जाएंगे. जहां 1400 सालों में जारी फरमानों के संग्रह का अवलोकन करेंगे. साथ ही श्रीसिद्धांत शिखामणि नामक दार्शनिक ग्रंथ का विमोचन करेंगे. विमोचन के साथ ही श्रीसिद्धांत शिखामणि नाम से एप भी पीएम लांच करेंगे.बता दें बनारस के गोदोलिया इलाके के 5000 स्कवायर फीट में फैला है ये जंगमबाड़ी मठ. मठ के अंदर जैसे ही आप प्रवेश करेंगे, आपको हर जगह छोटे बड़े कई शिवलिंग दिखाई देंगे. इतने की, आज तक गिनती पूरी नहीं हो पाई. यही नहीं, हर साल शिवलिंग की संख्या बढ़ती ही जा रही है. यही नहीं, जो लोग भी यहां आपको दिखाई देंगे, उनके गले में चांदी या अन्य धातु का एक बड़ा सा ताबीजनुमा लॉकेट होगा. उसके अंदर भी शिवलिंग होगा. इंसान से लेकर दीवारों तक, मठ से लेकर मंदिर तक, हर जगह सिर्फ और सिर्फ शिवलिंग.जंगमबाड़ी मठ का ये है इतिहासदावा किया जाता है कि 5वीं शताब्दी में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग से जगतगुरु विश्वाराध्य जी उद्भव हुए थे, जिन्होंने मठ की स्थापना की थी. जबकि, शिवलिंग की स्थापना जगतगुरु विश्वाराध्य के न रहने के बाद से ही शुरू हुई, जो आज तक चली आ रही है. बताया जाता है कि बाद में राजा जयचंद ने भूमि दान दी और फिर इसका निर्माण कराया. अब तक जंगमबाड़ी मठ में 86 जगतगुरु हो चुके हैं. मौजूदा वक्त में चंद्रशेखर शिवाचार्य महाराज के हाथों में इसकी कमान हैं. काशी का ऐतिहासिक जंगमबाड़ी मठये संप्रदाय नहीं मानता पुनर्जन्ममंदिर के प्रबंधक बताते हैं कि यहां जब लाखों की संख्या में जब खंडित शिवलिंग निकले तो सबको एक जगह जमीन में रखकर ऊपर विश्वनाथ स्वरुप मंदिर बना दिया गया. कई लाख शिवलिंग मठ के अंदर मौजूद हैं. जिसकी गिनती आज तक पूरी नहीं हो पाई. मठ के अंदर कई गुरुओं की जिंदा समाधियां भी हैं. दरअसल, इस मठ और मंदिर से जुड़े लोग वीर शैव संप्रदाय से जुड़े हैं. जितनी दिलचस्प इस मठ में शिवलोक की तस्वीर है, उतनी ही दिलचस्प ही इस संप्रदाय की मान्यताओं की कहानी है. पूजन पाठ और भक्ति और शक्ति हर कुछ सामान्य हिंदुओं की तरह है लेकिन सइ संप्रदाय से जुड़े लोग पुनर्जन्म नहीं मानते. इसी मान्यता पर ही टिकी है इस शिवलोक की कहानी.मौत के बाद दफनाने का है रिवाजदरअसल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, उड़ीसा समेत कई राज्यों में सम्प्रदाय के लोग हैं, जो पूर्वजों के मुक्ति के लिए यहां पिंडदान की जगह शिवलिंग स्थापित करते हैं. मसलन, जैसे सामान्य सनातन धर्मी अपने परिजनों का पिंडडान करते हैं, उसी तरह ये शिवलिंग. इनके यहां जब भी किसी की मौत होती है तो उसको दफनाने के बाद काशी आकर यहां उस आत्मा के नाम पर एक शिवलिंग स्थापित करते हैं. इनका मानना है कि काशी मोक्षनगरी है, इसलिए अब उसका आत्मा का मिलन शिव से हो गया है और उसे मोक्ष प्राप्त हो गया. इस मठ में हर तरफ लाखों शिवलिंग स्थापित किए गए हैं.दूसरी तरह से समझें तो आदि, अनादि काल से हर कोई मुक्ति की चाह लेकर काशी आता है. लेकिन वीरशैव सम्प्रदाय के लोग यहां अपने पुरखों को भगवान शिव के स्वरूप में स्थापित करते हैं. सम्प्रदाय में व्यक्ति के निधन के बाद शव दफन किया जाता है. उसी स्थल पर शिवलिंग बनाकर लोग 5 दिन तक पूजन करते हैं. इसके बाद काशी में आकर उनके नाम का शिवलिंग स्थापित करते हैं. हर वर्ष यहां आकर पूजन व भोज कराते हैं.पूर्वजों की शिवलिंग के रूप में विशेष पूजाशिवलिंगों का रिकार्ड रखा जाता है. उनकी पुण्यतिथि पर उनके नाम की पूजा की जाती है. मठ में खासकर कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदि प्रांतों के लोग आते हैं. वीर शैव सम्प्रदाय की देशभर में पांच पीठ हैं. इसमें काशी के अलावा उज्जैन (मध्यप्रदेश), श्रीशैल्य (आंध्रप्रदेश), रम्भापुरी (कर्नाटक) एवं केदारपीठ (उतराखण्ड) हैं. अन्य पीठों में लोग गुरु पूजन व दर्शन के लिए जाते हैं. इस सम्प्रदाय में व्यक्ति के निधन के बाद उसे शिवलिंग रूप में माना जाता है. उनका पुनर्जन्म नहीं होता है. उनकी आत्मा शिवलिंग स्वरूप में विलीन हो जाती है. इसीलिए पूर्वजों की शिवलिंग रूप में विशेष पूजा की जाती है. पूर्वजों के लिए लोग यहां शिवलिंग स्थापित कराते हैं,गर्भवती महिला को भी बांधा जाता है शिवलिंगमठ में पूर्वजों के लिए 2 इंच का शिवलिंग दिया जाता है. 125 रुपए में मठ में शिवलिंग स्थापित किया जाता है. मठ से जुड़े डाॅ महादेव शिवा स्वामी बताते हैं कि इस समाज में जन्म भी शिव है और मृत्यु भी शिव. इसलिए मरने वाले इंसान के नाम से जहां ये मंदिर आकर शिवलिंग स्थापित करते हैं, उसी तरह जन्म भी शिव की शरण में होता है. वीर सौर्य सम्प्रदाय में जब महिला पांच महीने की प्रेग्नेंट होती है, तब उसके कमर पर बच्चे की रक्षा के लिए छोटा सा शिवलिंग बांध दिया जाता है. बच्चे के जन्म के कुछ महीनों बाद वही शिवलिंग गले में बांधा जाता है. मां दूसरा शिवलिंग धारण कर लेती है, जो जीवन भर उसके साथ रहता है.बच्चे का नामकरण जो भी गुरु करता है, वो शिवलिंग की पूजा कर वापस गले में बांध देता है. वो शिवलिंग भी इंसान की अंतिम सांस तक उसके साथ रहता है. इसलिए इस संप्रदाय के हर महिला और पुरुष के गले में आपको लॉकेटनुमा शिवलिंग पहना हुआ आप देखेंगे. इनकी कोई भी पूजा या दिन की शुरुआत गले में बंधे शिवलिंग की अराधना के साथ होती है.एक छत के नीचे 15 लाख से ज्यादा हैं शिवलिंगसैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे 15 लाख से ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं. यहां वीरशैव संप्रदाय के लोग पूर्वजों के मुक्ति के लिए शिवलिंग स्थापित करते हैं. यहां मठ के मध्य में जो शिवलिंग स्थापित हैं, वो यहां के गुरुओं, आचार्यों और यहां से शिक्षाप्राप्त लोगों के है जबकि बाहर मंदिरनुमा छत के नीचे संप्रदाय के आम इंसान के. इस मठ को लेकर समय-समय पर मुस्लिम शासकों ने पत्र लिखे हैं.इस मठ में यह परंपरा पिछले 250 साल से लगातार चली आ रही है. यहां देश भर से इस संप्रदाय से जुड़े लोग आते हैं. हिंदू धर्म में जिस विधि विधान से पिंडडान किया जाता है, ठीक वैसे ही मंत्रोचारण के साथ यहां शिवलिंग स्थापित किया जाता है. शिवलिंगों कि संख्या गिनी तो नहीं गई है, लेकिन श्रद्धालु एक साल में लाखों शिवलिंगों की स्थापना करते हैं. जो शिवलिंग खराब होने लगते हैं, उसे मठ में ही सुरक्षित स्थान पर रख दिया जाता है.सावन और महाशिवरात्रि पर विशेष आयोजनमंदिर के निचले हिस्से में भी लाखों शिवलिंगों को रखा गया है. सम्प्रदाय की प्रमुख पीठ जंगमबाड़ी मठ में पुरखों के नाम के लाखों शिवलिंग हैं. शिवरात्रि पर सम्प्रदाय के लोग शिवलिंग के रूप में स्थापित अपने पितरों की विशेष पूजा करते हैं. वीरशैव सम्प्रदाय के लिए जंगमबांड़ी मठ खास महत्व रखता है. वैसे यहां पुरखों के नाम का शिवलिंग स्थापित करने का मुहूर्त नहीं होता है. आमतौर पर भगवान शिव के प्रिय मास सावन एवं महाशिवरात्रि के दिन को विशेष माना जाता है.पीएम मोदी वाराणसी पहुंचकर सबसे पहले इसी मठ में जाएंगे. जहां 1400 सालों में जारी फरमानों के संग्रह का अवलोकन करेंगे. साथ ही श्रीसिद्धांत शिखामणि नामक दार्शनिक ग्रंथ का विमोचन करेंगे. विमोचन के साथ ही श्रीसिद्धांत शिखामणि नाम से एप भी पीएम लांच करेंगे. वीरशैव सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र है ये मठमठ के बारे में कुछ और विशेष बातें – मठ में 1400 साल पुराने ऐतिहासिक दस्तावेज हैं. हिंदू और मुस्लिम शासकों की ओर से अलग-अलग कालखंड में जंगमबाड़ी मठ को दिए दान का फरमान है.- सबसे पुराना दानपत्र छठी शताब्दी का है जो काशी नरेश महाराज जयचंद्र के काल है.- दूसरा फरमान 1076 का है. शेष में चार फरमान अकबर, तीन औरंगजेब और दो-दो दाराशिकोह और शाहजहां के और एक फरमान जहांगीर की ओर से जारी किया गया है.- मठ में कई पीठाधीश्वरों की समाधियां हैं, जो शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं. इसमें स्वामी विश्वाराध्य महाराज, स्वामी मलिकार्जुन, हरिश्वर शिवाचार्य, राजेश्वर शिवाचार्य, शिवलिंग शिवाचार्य, पंचाक्षर शिवाचार्य, वीरभद्र शिवाचार्य, विश्वशेश्वर शिवाचार्य आदि शामिल है. बीएचयू स्थित हैदराबाद कॉलोनी में भी जंगम बाबा समाधि स्थल भी है.- कर्नाटक के हेलेरी डायनेस्टी ऑफ कोडगु स्टेट के राजा चिकवीरा राजेन्द्र व उनका परिवार भी इस मठ में शिवलिंग स्वरूप में स्थापित है. लंदन में राजा के निधन के बाद 1862 में मठ परिसर में उनकी समाधि स्थापित की गई थी. परंपरानुसार उनके नाम का शिवलिंग भी स्थापित किया गया. इसके बाद तीन रानियां देवाम्माजी, गंगाम्माजी और नजम्माजी के अलावा राजकुमार लिंग राजेन्द्र वडीयर के नाम पर शिवलिंग स्थापित है.ये भी पढ़ें:CAA प्रदर्शन को लेकर शायर इमरान प्रतापगढ़ी को 1 करोड़ से ज्यादा का नोटिसभीम शोभा यात्रा बवाल: अखिलेश का हमला, कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल पीड़ितों से मिला
Source: News18 News

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